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अनुत्सुकता अनुत्सुकता साधना का शक्तिशाली प्रयोग है। उत्सुकता बढ़ती है। कण्ठ की संवेदना तीव हो जाती है। कण्ठमणि (थायराइड) का स्राव तीव हो जाता है।
साधना के प्रति आकर्षण होने का प्रथम प्रयोग है अनुत्सुकता का विकास।
जितनी उत्सुकता उतनी मन की चंचलता और उतना ही शक्ति का व्यय । उत्सुकता के क्षणों में मन की क्रिया बहूत बढ़ जाती है। अभिलषित वस्तु को देखने या पाने की उत्कण्ठा तीव्र हो जाती है। उस तीवता से शरीर और मन दोनों असंतुलित हो जाते हैं।
२४ सितम्बर
२०००
भीतर की ओर
भीतर की ओ
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