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वायु तत्त्व वायु तत्त्व का स्थान है आनन्दकेन्द्र (अनाहत चक्र)। यह समूचे शरीर में व्याप्त है। तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में दबाने पर शरीर में वायु तत्त्व सक्रिय होता है। इसकी सक्रियता से स्फूर्ति रहती है, प्राणशक्ति प्रबल बनती है, शारीरिक शक्ति मजबूत होती है।
घाण शक्ति पर इस तच्च का नियंत्रण है। इसकी अधिकता से गले व छाती का दर्द, बुखार, कब्ज, हिचकी, लकवा और गठिया आदि रोग उत्पन्न होते हैं। इसके प्राधान्य से नकारात्मक विचार व मानसिक तनाव पैदा होता है।
२१ सितम्बर से २३ दिसम्बर तक शरीर में वायु तत्त्व की प्रधानता रहती है।
०३ जुलाई २०००
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(भीतर की ओर)
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