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अमृतसाव और रसायन-(१)
नाभि में सूर्यनाड़ी और तालुमूल में चन्द्रनाड़ी का स्थान है। सहसार में अमृत का प्रवाह होता है। सूर्यनाड़ी से अमृतपान करने पर जीवनी शक्ति कम होती है। चन्द्रनाड़ी से अमृतपान करने पर जीवनी शक्ति बढ़ती है। इसीलिए विपरीतकरणी में सूर्यनाड़ी को ऊपर और चन्द्रनाड़ी को नीचे किया जाता है।
विपरीतकरणी की विधि
सिर को भूमि पर रखकर दोनों हाथों को शरीर के समकोण में फैलाएं। दोनों पैरों को श्वास भरते हुए ऊपर उठाएं। श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे नीचे की ओर आएं।
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०३ अगस्त
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२०००
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