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वळ.
अमृतस्राव और रसायन -[2]
खेचरी मुद्रा में कपाल और जीभ का योग होता है । इसका अभ्यास करते समय जीभ पर विलक्षण रस का सञ्चार होता है। उस रस का स्वाद भी बदलता रहता है। कभी वह कटु और कभी वह मीठा । इस रस को अमृत माना गया है।
शरीर के अनेक भाग हैं जहां अमृतरस का स्राव होता है। वैज्ञानिक शाखा के अनुसार अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के रसों का स्राव सहज रूप में होता है। हठयोग के अनुसार कुछ विशेष प्रयोग करने पर रसों का स्राव होता है। इनका तुलनात्मक अध्ययन साधना के क्षेत्र में काफी उपयोगी हो सकता है ।
०४ अगस्त
२०००
भीतर की ओर
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