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ठक्ठठल
ब्रह्मचर्य - [१]
मनुष्य के जीवन का स्थूल पक्ष परिस्थिति और वातावरण से प्रभावित होता है। उसके जीवन का सूक्ष्म पक्ष कर्म से प्रभावित होता है। कर्म की कुछ प्रकृतियां परस्पर विरोधी होती हैं। दोनों का विपाक एक साथ नहीं होता। एक सक्रिय होती है तो दूसरी निष्क्रिय हो जाती है ।
वेद (वासनात्मक अभिलाषा) सक्रिय होता है, निर्वेद निष्क्रिय हो जाता है। निर्वेद सक्रिय होता है, वेद निष्क्रिय हो जाता है। यह ब्रह्मचर्य का महत्त्वपूर्ण सूत्र है ।
मस्तिष्क की सेरेबल कॉरटेक्स, जो विचार, मनन और स्मरणशक्ति से संबद्ध है, कामवासना का नियंत्रण करती है । यह सब भावों की नियन्ता है। इसका विकास आकांक्षाओं और वृत्तियों पर नियन्त्रण करने का साधन है ।
०७ अगस्त
२०००
भीतर की ओर
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