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तष्ठकठक्क
एकाग्रता की अवस्थाएं
ध्यान का अर्थ केवल एकाग्रता नहीं है। एकाग्रता ध्यान है, पर ध्यान एकाग्रता से परे भी है।
एकाग्रता सविकल्प ध्यान है। वह जैसे-जैसे सघन बनती है, विकल्प और विचार निःशेष होते चले जाते हैं ।
एकाग्रता की प्रथम अवस्था में शब्दबोध और अर्थबोध दोनों होते हैं। ध्यान करने वाला बाहर के शब्द को सुनता है और उसके अर्थ पर भी ध्यान चला जाता है ।
एकाग्रता की दूसरी अवस्था में शब्द सुनाई देता है, अर्थ पर ध्यान नहीं जाता।
एकाग्रता की तीसरी अवस्था में शब्द भी सुनाई नहीं देता।
२७ जून २०००
भीतर की ओर
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