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एकाग्रता की भूमिकाएं एकाग्रता जैसे-जैसे पुष्ट होती है वैसे-वैसे विषय बोध का परिवर्तन होता जाता है। एकाग्रता की अनेक भूमिकाएं हैं
१. ध्यानावस्था में बाह्य वस्तु का बोध बना रहता है।
२. बास्य वस्तु का बोध नहीं होता। ३. शरीर का ज्ञान बना रहता है।
४. शरीर का ज्ञान नहीं रहता। इस अवस्था में साधक को अनुभव होता है, मेरा शरीर कहां चला गया?
५. ध्येय का ज्ञान बना रहता है।
६. ध्येय का ज्ञान नहीं रहता। इस भूमिका में ध्याता और ध्येय एक बन जाते हैं।
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२६ जून २०००
- भीतर की ओर )
(भीतर की ओर
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