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पृथ्वी तत्व पृथ्वी तत्त्व का स्थान है शक्तिकेन्द्र (मूलाधार चक्र)। अस्थि, मास, त्वचा, रोम और रक्तवाहिनिया-इन पांचों का पृथ्वी तत्त्व से संबंध है। कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से दबाने पर शरीर में पृथ्वी तत्त्व का संतुलन होता है।
यकृत, आमाशय और प्लीहा पर इस तत्त्व का नियन्त्रण है। इसकी अधिकता से कफ, श्वास में भारीपन, आलस्य, उल्टी, पैर में कृमि और चक्षु रोग आदि होते हैं। यह तत्त्व यदि पूर्ण रूप से संतुलित हो तो व्रण, चमड़ी, हड्डी-सब ठीक हो जाते हैं।
२१ दिसम्बर से २० मार्च तक शरीर में पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता रहती है।
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३० जून २०००
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