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कर्नाटक
अहिंसा के स्मारकों की भूमि
अत्यन्त प्राचीनकाल से ही कर्नाटक जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। इस प्रदेश का जो इतिहास श्रुतकेवली भद्रबाह और चन्द्रगुप्त मौर्य के आलेखों, विभिन्न मन्दिरों, शिलालेखों आदि से प्राप्त हुआ है उससे इस कथन की पुष्टि होती है । यहाँ इतने मन्दिर और तीर्थ कालान्तर में बने या विकसित हुए कि इस भूमि को अहिंसा के स्मारकों की भूमि कहना अनुचित नहीं होगा।
कर्नाटक विभिन्न शैली के मन्दिरों की निर्माणशाला या विकासशाला रहा है । ईसा को प्रारम्भिक सदी में यहाँ काष्ठ के जैनमन्दिर निर्मित होते थे । एक कदम्बनरेश ने हलासी (पलाशिका) में ईसा की पांचवीं सदी में लकड़ी का एक जैनमन्दिर बनवाया था। हमचा के शिलालेखों में उल्लेख है कि वहाँ पाषाण मन्दिर बनवाया गया। यह तथ्य यह भी सूचित करता है कि पहले कुछ मन्दिर पाषाण के नहीं भी होते थे । काष्ठमन्दिरों के अतिरिक्त कर्नाटक में गुफा-मन्दिर भी हैं जो पहाड़ी की चट्टान को काट-काटकर बनाए गए । इस प्रकार के मन्दिर ऐहोल और बादामी में हैं। कालान्तर में पाषाण की काफी चौड़ी और मोटी शिलाओं से मन्दिर बनाये जाने लगे। ऐसा एक मन्दिर ऐहोल में 634 ई. में बना जो इसलिए भी प्रसिद्ध है कि प्राचीन मन्दिरों में वही एक ऐसा मन्दिर है जिसकी तिथि हमें ज्ञात है। हम्पी (विजयनगर) का गानिगित्ति मन्दिर विशाल शिलाखण्डों से निर्मित मन्दिरों का एक सुन्दर उदाहरण है। तीन मोटी और ऊँची शिलाओं से उसकी दीवार छत तक पहुंच गई है। शायद उसमें जोड़ने के लिए मसाले का भी प्रयोग नहीं किया गया है। मन्दिरों के शिखरों का जहाँ तक प्रश्न है, कर्नाटक में उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय दोनों ही प्रकार के शिखरों के मन्दिर विद्यमान हैं। मूडबिद्री के मन्दिर तो नेपाल और तिब्बत की निर्माण शैली से संयोगवश या सम्पर्कवश साम्यता रखते हैं । सुन्दर नक्काशी युक्त एक हजार स्तम्भों तक के मन्दिर (मूडबिद्री) कर्नाटक में हैं । और उनमें से कुछ की पालिश अभी भी अच्छी हालत में है । कुछ मन्दिरों में संगीत की ध्वनि देने वाले स्तम्भ भी हैं। नक्काशी में भी यहाँ के मन्दिर आगे हैं। बेलगाँव की कमल बसदि का कमल आबू के मन्दिरों के कमल से होड़ करना चाहता है तो जिननाथपुरम् के मन्दिर काम उत्कीर्णन मन मोह लेता है। मानस्तम्भों की भी यहाँ विशेष छवि है। कारकल में एक ही शिला से निर्मित 60 फुट ऊँचा मानस्तम्भ है तो मूडबिद्री में मात्र 40 इंच ऊँचा मान स्तम्भ देखा जा सकता है।
मूर्तिकला का तो कर्नाटक मानो संग्रहालय ही है । यहाँ मूडबिद्री में पकी मिट्टी (clay) की मूर्तियां हैं तो पाषाण से निर्मित विशालकाय गोम्मट (बाहुबली) मूर्तियाँ हैं। श्रवणबेलगोल की 57 फुट ऊँची मूर्ति तो अब विश्वविख्यात हो चुकी है । कारकल की 42 फुट ऊँची बाहुबली मूर्ति खड़ी करने का विवरण ही रोमांचक है। वेणर और धर्मस्थल तथा गोम्मटगिरि की मूर्तियों का अपना ही आकर्षण है । बादामी गुफा मन्दिर की