Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[६३] नस्यकर्मशिरसोरुजापहं भ्रललाटभुजशङ्खमू । पीपल, वृश्चिकाली (विछाटी), लोह चूर्ण, हल्दी,
- लकम् ॥ । दारु हल्दी, चीता, भारंगी, दो प्रकारका पाठा, शीर्षरोगमपि चर्षिशीर्षकं तोदने च विहिते पुनर्नवा ( बिसखपरा ), बायबिडंग, पीपल और
न केवलम् । । लोध । सब चीजें समान भाग मिलाकर २० तोले कर्णरोगमपि वारयत्यपि देवदारुजघृतंपरंस्मृतम् ॥ लें और पानीके साथ पीसकर कल्क बनावें तत्प
काथ-देवदारु, हल्दी, नागरमोथा, सठी श्चात् इस कल्क और ८ सेर गोमूत्र के साथ २ (कचूर), पोखरमूल, इन्द्रजौ, पीपल, कठ, लोध, सेर घृत पकावें।
यह घृत पाण्डु, हृद्रोग, ग्रहणी और अर्शादि चव, और जवासा। सब समान भाग मिलाकर
गुदरोगों को नष्ट करता है। २ सेर लें और १६ सेर पानीमें पका जब ४ सेर
(मात्रा-१ से २ तोलेतक । ) पानी शेष रहे तो छान लें।
नोट-इसमें पाकके समय फेन अधिक कल्क-गूगल, सेठ, सेधा, हरे, बहड़ा आएंगे इसलिये बडे बरतनमें पकावें । और आमला सब समान भाग मिलाकर २० ताल (३०६८) द्राक्षाघतम् (१) लें और पानीके साथ पीसलें ।
(च. सं. । चि. अ. २०; च. द. । पाण्डुः ; विधि-कल्क, काथ, २ सेर नवनीत
ग. नि. । घृता.) ( दहीका मक्खन), २ सेर दूध और ४ सेर दही
पुराणसर्पिषःप्रस्थो द्राक्षाप्रस्थसाधितः । एकत्र मिलाकर पकावें। जब घृतमात्र शेष रह जाय
कामलागुल्मपाण्ड्वतिज्वरमेहोदरापहः ॥ तो उसे छानकर ठण्डा करके उसमें (आधा सेर )
___पुराना घी २ सेर, दाख (मुनक्का) का कल्क खांड मिलावें।
(बीज रहित और पत्थर पर पिसा हुवा) आधा इसकी नस्य लेनेसे शिरपीडा, शिरके अन्य
सेर (तथा पानी ८ सेर) लेकर सबको एकत्र मिलारोग, भ्र ललाट भुज और शङ्ख प्रदेशकी पीड़ा, कर पकावें।। आधासीसी, और कर्णरोग नष्ट होते हैं।
___ यह घृत कामला, गुल्म, पाण्डु, ज्वर, प्रमेह (३०६७) देवदाचं घृतम्
और उदररोगोंको नष्ट करता है । (वं. से. । पाण्डु.)
(मात्रा-३ से ६ माशे तक ।) देवत्रिफलाम्योपश्चिकालीबयोरजः। (३०६९) द्राक्षाघृतम् (२) हरिने चित्रकं भार्गी पाठे द्वे च पुनर्नवा ।। (वै. क. दु. । स्क. २ राजय.; यो. र.; वं. विड पिप्पली लोभ्रं पचेन्मूत्रचतुर्गुणे। से. । क्षत.; भा. प्र. । ख. २ उरःक्षत; ग. घृतं तत्पाण्डुहृद्रोगग्रहणीगुददोषनुत् ।। नि.। घृता.; वृ. यो. त. । त.७७; यो. त.। देवदारु, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च,
त. २८) १ गदनिप्रहमें इलोक भिन्न है, प्रयोग यही है।
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