Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतपकरणम]
तृतीयो भागः।
[६१]
दारुहल्दीकी छाल, मुलैठी, लोध, नागकेसर, | इन्द्रजौ, और सारिवा । हरेक चीज ११-१॥ तोला पटोलपत्र, हर्र, बहेडा और आमला । हरेक २॥- लेकर सबको पानीके साथ पत्थर पर पीसलें । २॥ तोले लेकर २ सेर पानीमें पकावें, जब आधा विधि-२ सेर घी, ४ सेर दूध, उपरोक्त सेर पानी रह जाय तो छान लें । इसमें १० तोले काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । जब घी और १ तोले ८ माशे मुलैठीका कल्क मिलाकर घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें ॥ काथ जलने तक पुनः पकावें ।।
___यह घृत ज्वर, दाह, भ्रम, खांसी, कन्धोंकी इस घी के लगाने से अण भरजाते हैं।
पीड़ा, पसलीका दर्द, शिरशूल, तृष्णा, छर्दि, और नोट-उपरोक्त सब चीजोंका काथ न बना
अतिसारको नष्ट करता है।
(मात्रा १ से २ तोले तक ।) कर कल्क डालने से अधिक गुणकारी होगा। उस दशामें २ सेर घी और ८ सेर पानी मिला
( पाककी उत्तमताके लिये ८ सेर पानी भी कर पकाना चाहिये।
डालना चाहिये ।) (३०६२) दुरालभायं घृतम् | (३०६३) दूर्वादितम् (१) (च. सं. । चि. अ. ८)
(ग. नि. । विसर्प.) दुराममा श्वदंष्टाश चतनः पणिनीलाम् । दस्विरससिद्धच घृतं स्याव्रणरोपणम् । भागान्पलोन्मितान् कृत्वा पलं पर्यटकस्य च ॥ पशगुणे तोये दशभागावशेषिते ।
दुबके स्वरसके साथ पका हुवा घृत लगाने
से प्रण (घाव ) भर जाते हैं। रसे सपूते द्रव्याणामेषां कल्कान्समावपेत् ॥ अठचाः पुष्करमूलस्य पिप्पलीत्रायमाणयोः।।
(दूबका स्वरस ४ सेर, पानी ४ सेर, धी तामलक्याः किरावानां तिक्तस्य कुटजस्य च ॥ १ ) फलानां शारिवायाच मुपिष्टान् कर्षसम्मिताना दूर्वादिघृतम् (२) ततस्तेन घृतमस्यं क्षीरद्विगुणितं पचेत् ॥ | ( . मा.; वं. से. । आगन्तुक व्रण; वृ. यो. त.। ज्वरं दाई भ्रम काममंसपार्श्वशिरोरुजम्। त. ११२; भै. र.; च. द. । व्रणशोथ ।) तृष्णां छर्दिमतीसारमेतान्सपिरपोहति ॥ दूर्वादि तैल सं. ३१०८ देखिये।
काथ-धमासा, गोखरु, शालपर्णी, पृष्ट- (३०६४) दूर्वा दिघृतम् (३) पर्णी, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, पित्तपापड़ा और खरैटी। (वृ. नि. र.; यो. र. । विसर्प.) सब चीजे ५-५ तोले लेकर १० सेर पानी में दुर्वावटोदुम्बरजम्बुशाल पकावें और १ सेर पानी शेष रहने पर छान लें।
सप्तच्छदाश्वत्थकषायफल्कैः। कल्क-शठी (कचूर ), पोखरमूल, पीपल, सिद्धो विसर्पज्वरदाहपाक प्रायमाना, मुईआमला, चिरायता, पटोलपत्र, विस्फोटनोफान्विनिहन्ति सर्पिः॥
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