Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. २ : सू. ४९-५४ ४९. भंते ! क्या जीव भवसिद्धिक स्वभाव से होते हैं ? परिणाम से होते हैं ? ___ जयंती ! जीव भवसिद्धिक स्वभाव से होते हैं, परिणाम से नहीं होते। ५०. भंते ! क्या सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे ?
हा, जयंति ! सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे। ५१. भंते ! यदि सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएंगे क्या यह लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं हो जायेगा?
यह अर्थ संगत नहीं है। ५२. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब भवसिद्धिक-जीव सिद्ध हो जायेंगे तो यह लोक भवसिद्धिक-जीवों से रहित नहीं होगा? जयंती ! जैसे कोई सर्व-आकाश श्रेणी है-अनादि, अंतहीन, परिमित, और अन्य श्रेणियों से परिवृत। उस श्रेणी से एक परमाणु-पुद्गल जितना खण्ड प्रति समय अपहृत करें तो भी अनंत उत्सर्पिण और अवसर्पिणी काल में उनका अपहार नहीं होता। जयंती! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है सब भवसिद्धिक-जीव सिद्ध हो जायेंगे फिर भी यह लोक भवसिद्धिक-जीवों से विरहित नहीं होगा। ५३. भंते ! जीवों को सुप्त रहना अच्छा है ?
जयंती ! कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। कुछ जीवों का जागृत रहना अच्छा है। ५४. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है, कुछ
जीवों का जागृत रहना अच्छा है ? जयंती ! जो ये जीव अधार्मिक, (अधर्म का अनुगमन करने वाले) अधर्मिष्ठ, अधर्मवादी, अधर्म को देखने वाले, अधर्म में अनुरक्त, अधर्म का आचरण करने वाले, अधर्म के द्वारा आजीविका करने वाले हैं, उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। उन जीवों के सुप्त रहने से वे अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी करने के लिए, शोकाकुल करने के लिए, खिन्न करने के लिए, रुलाने के लिए, पीटने के लिए, परितप्त करने के लिए, प्रवृत्त नहीं होते। उन जीवों के सुप्त रहने से वे स्वयं को, अथवा दूसरे को अथवा स्व-पर-दोनों को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं में संयोजित नहीं करते। अतः उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। जयंती ! जो ये जीव धार्मिक, धर्मानुग, धर्मिष्ठ, धर्म का आख्यान करने वाले, धर्म का प्रलोकन करने वाले, धर्म से रंजित, धर्म का आचरण करने वाले और धर्म के द्वारा ही आजीविका चलाते हुए विहरण करते हैं, उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। उन जीवों के जाग्रत रहने से वे अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी न करने के लिए, शोकाकुल न करने के लिए, खिन्न न करने के लिए, न रुलाने के लिए, न पीटने के लिए और न परितप्त करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। उन जीवों के जाग्रत रहने से वे स्वयं को, दूसरे को, दोनों को अनेक धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं। वे जीवों के जागृत होने पर धर्म-जागरिका के द्वारा अपनी आत्मा को जाग्रत करते हैं। इसलिए उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। जयंती। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है, कुछ जीवों का जागृत रहना अच्छा है।
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