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भगवती सूत्र-ग. १८ उ. १ योग उपयोगादि प्रथम है या अप्रथम ?
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१९-पंचहिं पजत्तीहिं पंचहिं अपज्जत्तीहिं एगत्तपत्तेणं जहा आहारए, णवरं जस्स जा अस्थि, जाव वेमाणिया णो पढमा, अप. ढमा ।१४। इमा लक्खण-गाहा
"जो जेणं पत्तपुव्वो भावो सो तेण अपढमओ होइ ।
सेसेसु होई पढमो अपत्तपुब्वेसु भावेसु ॥" कठिन शब्दार्थ-सागरोवउत्त-ज्ञानोपयोग युक्त, अणागारोवउत्त-दर्शनोपयोगी।
भावार्थ-१५-सयोगी, मनयोगी, वचनयोगी और काययोगी, ये सभी एकवचन और बहुवचन से आहारक जीवों के समान अप्रथम होते हैं। जिन जीवों के जो योग हो, वह उसी प्रकार जानना चाहिये । अयोगी जीव, मनुष्य और सिद्ध-ये सभी एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं।
१६-साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी एकवचन और बहुवचन से ' आहारक जीवों के समान हैं।
१७-सवेदक यावत् नपुंसक वेद वाले एकवचन और बहुवचन से आहारक जीव के समान हैं। जिस जीव के जो वेद हो, वही जानना चाहिए । एकवचन और बहुवचन से अवेदक जीव; मनुष्य और सिद्ध, अकषायी जीव के समान है।
१८-सशरीर जीव, आहारक के समान हैं। इसी प्रकार यावत् कार्मणशरीरी जीव के विषय में भी समझना चाहिये । जिस जीव के जो शरीर हो, वही कहना चाहिये, किन्तु आहारक शरीरी के विषय में एकवचन और बहुवचन से सम्यग्दष्टि जीव के समान कहना चाहिये । अशरीरी जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं।
१९-पाँच पर्याप्ति से पर्याप्त और पांच अपर्याप्ति से अपर्याप्त जीव, एकवचन और बहुवचन से आहारक के समान हैं। जिसके जो पर्याप्ति हो, वह कहनी चाहिये । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिये । अर्थात् ये सब प्रथम नहीं, अप्रथम हैं।
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