________________
भगवती सूत्र - श. १८ उ १ सलेगीपनादि प्रथम है या अप्रथम ? २६५५
अपेक्षा सम्यग्दृष्टि जीव की वक्तव्यता के समान जानना चाहिये । असंयत का कथन आहारक जीव के समान समझना चाहिये । संयतासंयत जीव, पञ्चिन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य, इन तीन पदों में एकवचन और बहुवचन से सम्यग्दृष्टि के समान कदाचित् प्रथम और कदाचित् अप्रथम होता है। नोसंयत नोअसंयतसंयतासंयत जीव और सिद्ध एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं ।
१३ - सकषायी, क्रोधकषायी, यावत् लोभकषायी - ये सब एकवचन और बहुवचन से आहारक जीव के समान हैं। अकषायी जीव कदाचित् प्रथम । और कदाचित् अप्रथम होता है, इसी प्रकार अकषायी मनुष्य भी । सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं । बहुवचन से अकषायी जीव और मनुष्य प्रथम भी होते हैं और अप्रथम भी । सिद्ध जीव, बहुवचन से प्रथम है, अप्रथम नहीं ।
१४ - ज्ञानी जीव, एकवचन और बहुवचन से सम्यग्दृष्टि जीव के समान कदाचित् प्रथम और कदाचित् अप्रथम होते हैं । आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मन:पर्ययज्ञानी, एकवचन और बहुवचन से इसी प्रकार हैं, जिस जीव के जो ज्ञान हो, वही कहना चाहिये । केवलज्ञानी जीव मनुष्य और सिद्ध-ये सब एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं । अज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी ये सभी एकवचन और बहुवचन से आहारक जीव के समान हैं।
विवेचन-कोई सम्यग्दृष्टि जीव. प्रथम बार सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है, इस अपेक्षा वह प्रथम है और कोई सम्यग्दर्शन से गिर कर दूसरी-तीसरी बार पुनः सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है, इस अपेक्षा वह अप्रथम है । एकेन्द्रिय जीवों को सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होता। इसलिये एकेन्द्रियों के पाँच दण्डक छोड़ कर शेप १९ दंडकों का कथन किया गया है। सिद्ध सम्यग्दृष्टि भाव की अपेक्षा प्रथम हैं, क्योंकि सिद्धत्वसहचरित सम्यग्दर्शन मोक्ष गमन के समय प्रथम ही प्राप्त होता है ।
मिथ्यादृष्टि जीव, आहारक के समान एकवचन और बहुवचन से अप्रथम हैं, क्योंकि मिथ्यादर्शन अनादि है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org