Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
के समान लाल हो, रूखा और खण्डित हो तथा धनुष्ट और भंगाटक के समान हो तो वह पापकारी भयप्रद और रोग सूचक होता है। चन्द्रमा परिवेष से प्रायः वर्षा आताप का विचार किया जाता है और सूर्य के परिवेष से महत्त्वपूर्ण घटित होने वाली घटनाएं सूचित होती हैं।
पाँचवें अध्याय में विद्युत् का वर्णन किया है। इस अध्याय में २५ श्लोक हैं। आरम्भ में सौदामिनी और बिजली के स्वरूपों का कथन किया गया है। बिजली-निमित्तों का प्रधान उद्देश्य वर्षा के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना है। यह निमित्त फसल के भविष्य को अवगत करने के लिए भी उपयोगी है। बताया गया है कि जब आकाश में घने बादल छाये हों, उस समय पूर्व दिशा में बिजली कड़के और इसका रंग श्वेत या पीत हो तो निश्चयतः वर्षा होती है और यह फल दूसरे ही
[ प्राप्त होता है। ऋतु, दिशा, मास और दिन या रात में बिजली के चमकाने का फलादेश इस अध्याय में बताया गया है। विद्युत् के रूप, और मार्ग का विवेचन भी इस अध्याय में है तथा इसी विवेचन के आधार पर फलादेश का वर्णन किया गया है।
छठवें अध्याय में अभ्रलक्षण—का निरूपण है। इसमें ३१ श्लोक हैं, आरम्भ में मेंघों के स्वरूप का कथन है। इस अध्याय का प्रधान उद्देश्य भी वर्षा के सम्बन्ध में जानकारी उपस्थित करना है। आकाश में विभिन्न आकृति और विभिन्न वर्गों के मेघ छाये रहते हैं। तिथि, मास, ऋतु के अनुसार विभिन्न आकृति के मेघों का फलादेश बतलाया गया है। वर्षा की सूचना के अलावा मेघ अपनी
आकृति और वर्ण के अनुसार राजा के जय, पराजय, युद्ध, सन्धि, विग्रह आदि की भी सूचना देते हैं। इस अध्याय में मेघों की चाल-ढाल का वर्णन है, इससे भविष्यत् काल की अनेक बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। मेघों की गर्जन-तर्जन ध्वनि के परिज्ञान से अनेक प्रकार की बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
सातवा अध्याय सन्ध्या लक्षण है। इसमें २६ श्लोक हैं। इस अध्याय में प्रात: और सायं सन्ध्या लक्षण विशेष रूप से बतलाया गया है तथा इन सन्ध्याओं का रूप आकृति और समय के अनुसार फलादेश बतलाया गया है। प्रतिदिन सूर्य के अस्ति हो जाने के समय से जब तक आकाश में नक्षत्र भली-भाँति दिखलाई न दें तब तक सन्ध्याकाल रहता है; इसी प्रकार अोदित सूर्य से पहले तारा दर्शन तक उदय सन्ध्याकाल माना जाता है। सूर्योदय के समय की सन्ध्या यदि श्वेतवर्ण की हो और वह उत्तर दिशा में स्थित हो तो ब्राह्मणों को भय देने वाली होती है। सूर्योदय के समय लालवर्ण की सन्ध्या क्षत्रियों को, पीतवर्ण की सन्ध्या वैश्यों को और कृष्ण वर्ण की सन्ध्या शूद्रों को जय देती है। सन्ध्या का फल दिशाओं के अनुसार भी कहा गया है। अस्तकाल की सन्ध्या की अपेक्षा उदयकाल