Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
ग्रंथ के अन्दर निमित्तों का अध्यायानुसार विचार
(१) इस भद्रबाहु संहिता में भद्रबाहु स्वामी ने क्रमशः अनेक प्रकार के निमित्तों का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की है लेकिन सभी वर्णन इस ग्रंथ में नहीं मिलते या तो आगे का विषय नष्ट हो गया, अभी यह ग्रंथ २७ अध्यार्यो में ही मिलता है, मूहुर्त तक ही प्राप्त होता है, आगे का विषय नहीं। ग्रंथकर्ता ने तो पांच खण्डों में बारह हजार श्लोकों में इस ग्रंथ के रचना की प्रतिज्ञा की है, लेकिन इतना विषय इस वर्तमान में उपलब्ध भद्रबाहु संहिता में नहीं है, अवशेष विषय कहाँ गया कुछ पता नहीं या तो किसी शास्त्र भंडारों में पड़ा-पड़ा संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा होगा, या कालानुसार नष्ट हो गया।
प्रथम अध्याय में उल्का, परिवेष, विद्युत, अभ्र, सन्ध्या, मेघ, वात, प्रवर्षण, गन्र्धव नगर, गर्भलक्षण, यात्रा, उत्पात, ग्रहाचार, ग्रहयुद्ध स्वप्न, मुहर्त, तिथि, करण, शकुन, पाक ज्योतिष, वास्तु, इन्द्र संपदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, लग्न, विद्या, आदि का वर्णन हैं, किन्तु लब्ध विषय मुहुर्त तक ही है। ग्रंथ के प्रथम अध्याय में भद्रबाहु स्वामी ने इष्टदेव को नमस्कार किया, स्थान का वर्णन, शिष्यों के प्रश्न, श्रावक और मुनि दोनों के लिये ही निमित्तों की आवश्यकता, मुनियों के लिये तो आहार व्यवहार और बिहार के लिये जानना परम आवश्यक है क्योंकि चतुर्विध संघ को चलाना होता है, अकाल के स्थानों से बचाकर निरूपद्रव स्थानों में चतुर्विध संघ को रखकर धर्म का पालन करना पड़ता है, नहीं तो धर्मात्माओं के नष्ट होने की बारी आ जायेगी, इन शुभाशुभ निमित्तों को जानकर मुनि लोग ऐस ही क्षेत्रों में विहार करे, इत्यादि वर्णन प्रथम अध्याय में हैं।
(२) दूसरे अध्याय में आचार्य श्री श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी ने शिष्यों के उनके प्रश्नानुसार निमित्त ज्ञानों को उत्तर रूप में समझाना, प्रथमतः उल्काओं का वर्णन किया है, प्रकृति विरूद्ध दिखने पर जो विरूप दिखता है उससे ही शुभाशुभ जाना जाता है।
ताराओं के टूटने पर जो एक प्रकार का प्रकाश गिरता हुआ दिखे उसीको ही उल्का कहा है, मूलत: उल्का के आचार्य श्री ने पांच भेद कर दिये हैं, धिष्ण्या, उल्का, अशनि, विद्युत् और तारा।
उल्का का फल १५ दिन में मिलता है, धिष्ण्या और अशनिका ४५ दिनों में एवं तारा और विद्युत का छ: दिनों में प्राप्त होता है। तारा का जितना प्रमाण है, उससे लम्बाई में दूना धिष्ण्या का है। विद्युत् नामावाली उल्का बड़ी कुटिल टेढ़ी मेढ़ी और शीघ्रगामिनी होती है। अशनि नाम की