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मैं जो भी हूँ, सब उन्हीं की देन है। श्री देवेन्द्रराज जी मेहता से गत अनेक वर्षों से मेरा निकट का सम्पर्क रहा है। आप लेखन के लिए सतत प्रेरणा देते रहे हैं तथा प्राकृत भारती अकादमी के माध्यम से प्रकाशन कार्य को सम्पन्न करवाने में विशेष उत्साह व रुचि लेकर सर्व प्रकार का सहयोग देते रहे हैं। आपकी प्रेरणा के फलस्वरूप यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसके लिए मैं मेहता साहब का आभार एवं कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। आचार्यप्रवर श्री सुदर्शनलाल जी म.सा. ने पुस्तक के लेखन में सुझाव दिये। इसके लिए मैं आचार्य श्री के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। आपकी आज्ञानुवर्तिनी महासती श्री कमलप्रभा जी एवं श्री पदमचन्द मेहता ने पुस्तक का अवलोकन कर उत्साहवर्द्धन किया, डॉ. सागरमल जी ने भूमिका लिखी, डॉ. धर्मचन्द जी ने सम्पादन किया। प्राकृत भारती अकादमी ने इसे प्रकाशित किया, इन सबका आभार व कृतज्ञता प्रकट करता हूँ |
-कन्हैयालाल लोढ़ा 82/127, मानसरोवर, जयपुर-20
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प्राक्कथन