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गति के अनुवाद से सातावेदनीय की उदीरणा का अंतरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त ही है। असाता वेदनीय का उदीरणा काल जघन्य एक समय उत्कृष्ट 6 मास है। मनुष्य गति में असाता की उदीरणा का अंतर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अंतमुहूर्त प्रमाण है। साता-असाता वेदनीय कर्म-उपार्जन के हेतु
भगवती सूत्र में वेदनीय कर्म के उपार्जन व बंध के हेतु इस प्रकार कहे गये हैं
कठंणं भंते? जीवाणं आयवेयणिज्जा कम्मा कज्जति? गोयमा? पाणाणुकंपाएभूयाणुकंपाए,जीवाणुकंपाए,अत्ताणुकंपाए, बठूर्णपाणाणं जावसत्ताणं अदुक्रवणयाए,असोयणट्टाए,अजूरणयाए,अतिप्पणयाए, अपिट्टणयाए अपरियावणयाए, एवं खलु गोयमा? जीवाणं यायावेयणिज्जा कम्मा कज्जति।
कठंणं भंते! जीवाणं असायवेयणिज्जा कम्मा कज्जति? गोयमा? परदुक्रवणयाए, परसोयणयाए, परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए परपरियावणयाए, बठूणं पाणाणं जाव अत्ताणं दुक्रवणयाए, ओयणयाएजावपरियावणयाए,एवं खलुगोयमा? जीवाणं यायावेयणिज्जा कम्मा कज्जति।
-भगवती सूत्र शतक 7, उद्देशक 6 प्रश्न- हे भगवन्! जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन किस प्रकार करते हैं?
उत्तर- हे गौतम! प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से, बहुत से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से, उन्हें खेदित व पीड़ित न करने से, न पीटने से तथा परिताप न देने से जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करते हैं।
प्रश्न- हे भगवन्! जीव असाता वेदनीय कर्म का उपार्जन किस प्रकार करते हैं?
उत्तर- हे गौतम! दूसरे जीवों को 1. दुःख देने से, 2. शोक उत्पन्न करने से, 3. खेद उत्पन्न करने से, 4. पीड़ित करने से, 5. पीटने से, 6. परिताप देने से, 7. बहुत से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख देने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् परिताप उत्पन्न करने से जीव असाता वेदनीय
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वेदनीय कर्म