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गोत्र कर्म का स्वरूप
गोत्र कर्म
जैनागम में गोत्रकर्म के विषय में कहा है
गोए णं भंते! कम्मे कइविठे पण्णत्ते?
गोयमा ? दुविहे पण्णत्ते, तंजा - उच्चगोए य नीयागोए व ।। -पन्नवणा पद 23 उद्दे. 2
भगवन्! गोत्र कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? गौतम! गोत्र कर्म दो प्रकार का है- उच्च गोत्र और नीच गोत्र ।
सामान्यतः उत्तम कुल में जन्म लेना उच्च गोत्र और लोकनिंद्य कुल में जन्म लेना नीच गोत्र माना जाता है । परन्तु कौनसा कुल उच्च है और कौनसा कुल नीचा है, इसका कोई निश्चित मानदण्ड नहीं है । काल और क्षेत्र के अनुसार मानदंड में परिवर्तन होता रहता है । वर्ण-व्यवस्था में क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य आदि कुलों को उच्च गोत्र माना गया है, परन्तु इन वंशों में भी लोकनिंद्य पुरुषों ने जन्म लिया है और चांडाल, चमार, रैगर आदि कुलों को नीच गोत्र माना गया है, परन्तु इन वंशों में भी महात्मा, साधु-सन्तों, महापुरुषों ने जन्म लिया है तथा साधु सदैव उच्च गोत्र वाला ही होता है, नीच गोत्र वाला नहीं होता है। अतः जाति, वंश एवं वर्ण-व्यवस्था के आधार पर उच्च तथा नीच गोत्र नहीं माना जा सकता । उच्च आचरण को उच्च गोत्र और नीचे आचरण को नीच गोत्र मानना ही अधिक उपयुक्त है। जैसाकि गोम्मटसार कर्मकाण्ड में कहा है-संताणकमेणागयजीवायरणस्स गोदमिदि सण्णा ।
उच्च णीचं चरणं उच्च णीचं हवे गोदं । ।
- गोम्मटसार कर्मकांड, गाथा 13 अर्थात् संतान क्रम से चला आया जो जीव का आचरण है, उसकी गोत्र संज्ञा है । जीव का ऊँचा आचरण उच्च गोत्र है और नीचा आचरण नीच गोत्र है। यहाँ ऊँचे आचरण से आशय अहिंसा, दया, शिष्टता, मृदुता,
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गोत्र कर्म