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जं वेएइपोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गलपरिणामं वा, वीसया वा, पोग्गलाणं परिणामंतेसिंवा उदएणं उच्चागोयं कम्मं वेदेइ, एय णं गोयमा? उच्चागोयं कम्म।
एयणं गोयमा? उच्चागोयस्यणं कम्मस्यजीवेणं बद्धक्यजाव पोग्गलपरिणामं पप्प अविठे अणुभावे पण्णत्ते।
प्रश्न (ख) णीयागोयरसणंभंते? कम्मस्य जीवेणंबद्धस्यजाव पोग्गलपरिणामं पप्प कइविठे अणुभावे पण्णते?
उत्तर गोयमा? एवं चेव। णवरं-जाइविटीणया जाव इस्यस्यिविक्षणया। जं वेदेइ, ......संतं चेव जाव अट्ठविठे अणुभावे पण्णत्ते। -पण्णवणा पद 23, उद्दे.
प्रश्न (क) भंते! जीव के द्वारा बद्ध यावत् परिणाम को प्राप्त करके उच्च गोत्र कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (अनुभाव एवं फल) कहा गया है?
उत्तर- गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके उच्च गोत्र कर्म का आठ प्रकार का अनुभाव(फल) कहा गया है, यथा
___ 1. जाति विशिष्टता 2. कुल विशिष्टता 3. बल विशिष्टता 4. रूप विशिष्टता 5. तप विशिष्टता 6. श्रुत विशिष्टता 7. लाभ विशिष्टता 8. ऐश्वर्य विशिष्टता।
जो पुद्गल का या पुद्गलों का, पुद्गलपरिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम से उच्चगोत्र का वेदन करता है, गौतम! यह उच्च गोत्र कर्म है।
हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके उच्च गोत्र कर्म का यावत् यह आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया
है।
प्रश्न (ख) भंते! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके नीच गोत्र कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है?
उत्तर- गौतम! पूवर्वत् आठ प्रकार का कहा गया है, विशेषता यह है कि यह जातिविहीनता यावत् ऐश्वर्यविहीनता रूप होता है। इसमें पुद्गल
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गोत्र कर्म