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उतना-उतना अधिक संवदेन का प्रत्यक्षीकरण होता जाता है। जब जीव ध्यान द्वारा परमाणु का दर्शन या प्रत्यक्षीकरण करता है, तब दर्शन का विकास चरम सीमा पर पहुँच जाता है और उसे केवल दर्शन हो जाता है। इसी प्रकार ज्ञान का विकास करते हुए परमाणु जैसी सूक्ष्मतम वस्तु में उत्पाद- व्यय-ध्रौव्य नियमों को अनुभूति (संवेदन) के आधार पर जानने लगता है, तो उसको पूर्ण ज्ञान-केवलज्ञान हो जाता है। परमाणु जैसे सूक्ष्मतम पदार्थ का जिस समय संवदेन होता है, उसी समय उसमें होने वाले उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य अर्थात् सम्पूर्ण द्रव्य और पर्याय का भी ज्ञान होता है। यही सम्पूर्ण द्रव्य और पर्याय का ज्ञान केवलज्ञान है। अतः केवलज्ञान एवं केवल दर्शन गुण की उपलब्धि युगपत् ही होती है।
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दर्शनावरण कर्म