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1. नरकानुपूर्वीनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव विषम श्रेणी
स्थित नरकसम्बन्धी जन्म-स्थान पर पहुँचता है। 2. तिर्यंचानुपूर्वीनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव विषम श्रेणी-स्थित
तिर्यंच सम्बन्धी जन्म-स्थान में पहुँचता है। ___मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव विषम श्रेणी-स्थित
मनुष्य सम्बन्धी जन्म-स्थान में पहुँचता है। देवानुपूर्वीनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव विषम श्रेणी-स्थित देव सम्बन्धी जन्म-स्थान में पहुँचता है।
आनुपूर्वीनामकर्म की उपर्युक्त व्याख्या श्वेताम्बर आचार्यों ने की है। परन्तु दिगम्बर आचार्यों की व्याख्या इससे सर्वथा भिन्न है यथा“पूर्वशरीराकाराविनाशी यग्योदयाद्भवति तदानुपूर्वी नाम" (तत्त्वार्थ सूत्र 8. 11, सर्वार्थ सिद्धि टीका) जिसके उदय से पूर्व शरीर का आकार विनाश नहीं होता, वह आनुपूर्वी नाम कर्म है।
पुव्वुत्तरसवीराणमंतरे एग दो-तिण्णि-समए वट्टमाण-जीवस्य कम्मस्य उदएण जीवपदेसाणं विसिट्ठी उठाणविसेसो लेदि, तस्य आणुपुब्वि त्ति अण्णा-इच्छिदगदिगमणं-आणपुव्वीदो।
-सर्वार्थसिद्धि 8/11, धवला टीका खंड 1.9.1, सूत्र 41, पृष्ठ 76
पूर्व तथा उत्तर शरीरों के अंतरालवर्ती एक, दो और तीन समय में वर्तमान जीव के जिस कर्म के उदय से जीव प्रदेशों का विशिष्ट आकार विशेष होता है, उस कर्म की आनुपूर्वी संज्ञा है। ....आनुपूर्वी नामकर्म से इच्छित गति में गमन होता है।
सारांश यह है कि इस भव के शरीर को छोड़कर अन्य भव में जाने वाले जीव ने जिस गति में जाने का बंध किया है, उस गति में ले जाने वाला कर्म आनुपूर्वी नामकर्म है। गतियां चार होने से यह चार प्रकार का है- 1. नरकगति प्रायोग्य आनुपूर्वी नाम कर्म 2. तिर्यंचगति प्रायोग्य आनुपूर्वी नाम कर्म 3. मनुष्य गति प्रायोग्य आनुपूर्वी नामकर्म और 4. देवगति प्रायोग्य आनुपूर्वी नामकर्म । विहायोगति नामकर्म ___जीव की चाल को विहायोगति कहते हैं। इसके दो भेद हैं- शुभ विहायोगति और अशुभ विहायोगति ।
नाम कर्म
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