Book Title: Bandhtattva
Author(s): Kanhiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 250
________________ निरन्तर होता रहता है। इसे ही कर्म-सिद्धान्त में निर्माण नामकर्म कहा जा सकता है। आतपनामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर तो उष्ण नहीं हो, परन्तु शरीर से उष्ण प्रकाश निकलता हो उसे आतपनाम कहा है। सूर्य के विमान स्वरूप पृथ्वी कायिक एकेन्द्रिय जीवों के ऐसा शरीर माना गया है, परन्तु वर्तमान में खगोल विज्ञान ने सूर्य को आग का गोला माना है, विमान नहीं। अतः यह खोज का विषय है। कुछ मछलियाँ व जन्तु ऐसे हैं जिनके शरीर से निकलने वाले प्रकाश से विद्युत् के करंट जैसा धक्का लगता है। उद्योत नामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में उद्योत अर्थात् चमक उत्पन्न हो। उद्योत का अर्थ है शरीर से प्रकट होने वाला शीतल प्रकाश। तिर्यंच गति में एकेन्द्रिय वनस्पति आदि से लेकर पंचेन्द्रिय तक ऐसे पशु-पक्षी पाये जाते हैं, जिनके शरीर से शीतल प्रकाश निकलता है। पहले साधारणतः जुगनू को ही ऐसा माना जाता था, परन्तु जीव-विज्ञान की खोज में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक में उद्योत प्रकट करने वाले जीव हैं। जीव-विज्ञान में जिन जीवों के प्रकाश का उत्सर्जन होता है उन्हें प्रदीपी जीव कहते हैं, इनमें केवल जुगनू ही नहीं, प्रदीपी जीवों में कुछ विशिष्ट प्रकार के जीवाणु कवक, स्पन्ज, कोरल, फ्लैजिलेट, रेडियो-लेरियन, घोंघे, कनखजूरे, कान सलाई गोवारी(मिलीपीड) आदि अनेक प्रकार के कीट तथा अधिक गहराई में पाई जाने वाली समुद्री मछलियाँ आदि हैं। कवक और बैक्टीरिया जाति के एकेन्द्रिय जीव जब पेड़ों की सड़ी-गली शाखाओं-प्रशाखाओं पर उग आते हैं, तो वृक्ष प्रकाशमय दिखाई देने लगते हैं। यह प्रकाश इन्हीं बैक्टीरिया जीवों व कवकों का परिणाम है। न्यूजीलैण्ड की कुछ गुफाओं की छतों पर हजारों की संख्या में ग्लोवर्म-लार्वा रेंगते रहते हैं, जिनके शरीर के प्रकाश से गुफायें जगमगाती रहती हैं, इनके शरीर से एक धागा निकलता रहता है, जब कोई गुफा की दीवारों को थपथपा देता है, या आवाज करता है, तो प्रकाश निकलना बंद हो जाता है, गुफा में अंधेरा हो जाता है। यहीं एक कृमि कीट सेटोप्टेरसी पाया जाता है, यह इतना चमकीला होता है कि इसे मछली खा लेती है तो उसका पेट चमकने लगता है। नाम कर्म 171

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