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का द्योतक है। ऐसा व्यक्ति अस्वस्थ होता है व उसका जीवन दुर्भर हो जाता है। शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के निर्माण में अगुरुलघु प्रकृति का बहुत बड़ा भाग होता है।
__ शरीर में संतुलन रखने वाली अंतःस्रावी ग्रंथियों को भी अगुरुलघु कर्मोदय कह सकते हैं- जैसे थायरायड, पैरा थॉयराइड, एड्रीनल, अग्नाशय, थाइमस, पीनियल आदि। इनमें प्रत्येक से अलग-अलग हार्मोन स्रावित होते हैं, जो शरीर के अंग-उपांग व अन्य तत्त्वों को नियंत्रित रखने का कार्य करते हैं। ये ग्रंथियाँ हार्मोन वाहिनी होती हैं। अतः इन्हें शरीर के अंगोपांग नहीं कहा जा सकता। थायरायड ग्रन्थि शरीर रूपी मशीन का बड़ा अच्छा रेगुलेटर है। यदि थायरायड की सक्रियता कम हुई तो मोटापा आ जायेगा, थकान अनुभव होगी। सक्रियता अधिक हुई तो वजन घटता ही जायेगा, हृदय की धड़कन बढ़ेगी। थायरायड की गड़बड़ी का अर्थ है शरीर के संतुलन चक्र का गड़बड़ होना । पैराथायरायड का स्राव रुधिर में कैल्सियम और फॉस्फोरस की मात्रा का संतुलन रखता है। एड्रीनल ग्रंथि के स्राव का प्रभाव रक्तचाप, श्वास की गति आदि पर पड़ता है। अग्नाशय ग्रंथि का स्राव रुधिर में शक्कर की मात्रा का नियमन करता है। इसकी कमी से मधुमेह रोग हो जाता है।पीयूष ग्रन्थि में लगभग 13 प्रकार के हार्मोन स्रावित होते हैं। इनमें से कुछ अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को नियंत्रित करते हैं। एक हार्मोन शरीर की अस्थियों की लम्बाई को नियन्त्रित करता है तथा जननग्रन्थि को भी प्रभावित करता है।
जिस प्रकार मनुष्य में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से हार्मोन पैदा होते हैं उसी प्रकार पशुओं व पौधों में भी इन्डोस एसिटिक अम्ल हार्मोन होते हैं। पौधों के शीर्ष स्थानों पर कई इन्डोस हार्मोन बनते हैं जो कि पौधे की वृद्धि और परिवर्द्धन का नियंत्रण करते हैं।
___ आशय यह है कि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मनुष्य आदि सभी प्राणियों के शरीर में उसको यथोचित रूप में संतुलित रखने वाले हार्मोन होते हैं, जो शरीर में सदा कार्यरत रहते हैं। इसीलिए इन्हें अगुरुलघु प्रकृति कहा जा सकता है। शरीर से अर्थात् पुद्गल से संबंधित होने से यह प्रक्रिया पुद्गल विपाकी प्रकृति कही गयी है।
नाम कर्म
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