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है। इसके विपरीत असंयम से, भोग-विलास से तथा वेदना, प्राणाघात से आयु क्षीण होती है। इन सबमें प्राण मुख्य है। अभिप्राय यह है कि संयम, सदाचार, सेवा, सद्प्रवृत्ति आदि विशुद्ध भावों से शक्ति में वृद्धि होती है जिससे भावी शुभ आयु की स्थिति बंध में वृद्धि होती है तथा कषाय व संक्लेश भाव से शुभ आयु के स्थिति बंध में कमी होती है। अन्य सात कर्मों की समस्त पुण्य और पाप कर्म प्रकृतियाँ फल की आकांक्षा व राग-द्वेष, विषय-कषाय से विशेष समय तक फल देने वाली होती है, टिकने वाली होती है। अतः उनका स्थिति बंध अधिक होता है। परन्तु कषाय की वृद्धि प्राण- शक्ति का हास करने वाली होती है, अतः आयु कर्म की स्थिति के लिए बाधक व घातक होती है।
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आयु कर्म