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होती है। अर्थात् अन्तर नहीं पड़ता है। विद्युत के प्रकटीकरण में अन्तर आता है। विद्युत प्रवाह (धारा) में वृद्धि होने से ही विद्युत की वृद्धि होती है। इसी प्रकार इन्द्रिय ज्ञान की उपयोगिता में कितनी ही वृद्धि हो, इन्द्रिय ज्ञान में वृद्धि नहीं होती है। इस पृथ्वी का ही नहीं, अनन्त ब्रह्माण्ड का भी कोई ज्ञान करले तब भी ज्ञान गुण में वृद्धि नहीं होगी। दूसरे शब्दों में इन्द्रियों का विषय-भोग सम्बन्धी कितना ही ज्ञान हो, उससे ज्ञान गुण का विकास नहीं होता है । इन्द्रियों का विकास अर्थात् स्पर्शेन्द्रिय से आगे बढ़कर रसनेन्द्रिय-घ्राणेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय- श्रोत्रेन्द्रिय रूप विकास होना मतिज्ञान गुण का विकास है। यह विकास संक्लेश (कषाय) की कमी व विशुद्धि की वृद्धि से होता है अर्थात् मोह की कमी से होता है । परन्तु इन्द्रियों के इस विकास से इन्द्रियों के विषयों का कितना ही अधिक ज्ञान हो, उससे ज्ञान गुण का विकास नहीं होता । प्रकारान्तर से कहें तो भोगवती बुद्धि (मति) की उपयोगिता के विस्तार से ज्ञान गुण में लेशमात्र भी वृद्धि नहीं होती । विषय-भोग में सुख है, यह अज्ञान ज्यों का त्यों रहता है । यह अवश्य होता है कि विषय-भोग की प्रबलता या अधिकता से भोग की आसक्ति दृढ़ होती है, सबल होती है जो ज्ञान गुण की घातक है।
इन्द्रियज्ञान चाहे अनन्त ब्रह्माण्ड का हो, जब तक वह भोगवती बुद्धि से जुड़ा है, वह अज्ञान ही है । वह अल्प ज्ञान ही है, अधूरा ज्ञान ही है। क्योंकि विवेकवती बुद्धि के ज्ञान के प्रकाश के समक्ष वह ज्ञान सूर्य के समक्ष दीपक के समान अल्प है। विवेक कहते हैं- निज ज्ञान को । यदि निज ज्ञान या विवेक के प्रकाश में देखा जायेगा, तो ज्ञात होगा कि इन्द्रिय, उनके विषय, भोग शक्ति, भोग्य सामग्री, भोग सुख आदि सब परिवर्तनशील व नश्वर हैं, विनाशी हैं। विनाश किसी को इष्ट नहीं है । अतः ये सब अनिष्टकारी हैं। यह ज्ञान जितना - जितना बढ़ता जायेगा अर्थात् इस ज्ञान का जितना - जितना प्रभाव होता जायेगा, तदनुरूप आदर - आचरण होता जायेगा, विषयभोगों का त्याग होता जायेगा, उतना उतना ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम बढ़ता जायेगा। साथ ही मोह में कमी आती जायेगी अर्थात् मोह. की कमी और ज्ञान के आवरण में कमी में घनिष्ठ सम्बन्ध है । विवेकवती बुद्धि, विवेकमय सम्यक् ज्ञान है। अविवेकयुक्त ज्ञान मिथ्याज्ञान या अज्ञान है। अविवेक का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, विवेक का
ज्ञानावरण कर्म
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