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सम्बन्ध में उन्होनें विस्तृत चर्चा अपनी प्रकाश्य पुस्तक 'गरीबी-अमीरी कर्म का परिणाम नहीं है, में की है। अतः यहाँ इस सम्बन्ध में विस्तार से जाना अपेक्षित नहीं है।
वस्तुतः प्रस्तुत कृति में कर्म के बन्ध, उदय आदि के सम्बन्ध में उनका चिन्तन मौलिक और नवीन है। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है उसका शास्त्रीय आधार नहीं है। उन्होंने समस्त लेखन शास्त्रीय आधारों पर किया है। उनकी इस कृति का अवलोकन पाठकों के चिन्तन को नई दिशा देगा और शास्त्रीय आधारों पर एक सम्यक अवबोध प्रदान करेगा, साथ ही इस सम्बन्ध में परम्परा में चली आई भ्रान्तियों का निराकरण करेगा। उनका सम्यक मार्गदर्शन उनकी कृतियों के माध्यम से समाज को मिलता रहे, यही भावना है।
सागरमल जैन निदेशक, प्राच्य विद्यापीठ,
शाजापुर (म.प्र.)
भूमिका
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