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रहता है। अन्तराय कर्म के क्षय से पाना व भोगना शेष नहीं रहता है। इस प्रकार समस्त घाति-कर्मों का क्षय हो जाता है। इसीलिए साधक के लिए अनेक ग्रंथों का पठन करना अनिवार्य नहीं है। जघन्य ज्ञान केवल पाँच समिति, तीन गुप्ति का ही अनिवार्य बताया है। कारण कि शेष ज्ञान की उपयोगिता समिति-गुप्ति के पालन रूप सम्यक्-प्रवृत्ति में सजग रहना ही है। ज्ञानावरण कर्म-बंध के कारण
भगवती सूत्र शतक 8 उद्देशक 9 में ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म-बंध के छः छ: कारण बताये हैं। यथा
णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते? कस्य कम्मरस उदएणं?
गोयमा? णाणपडिणीययाए, णाणनिण्टवणयाए, णाणंतराएणं, णाणप्पओओणं, णाणच्चायादणयाए, णाणविसंवायणाजोगेणं णाणावरणिज्जकम्मसीरप्पओगणामाए कम्मस्य उदएणं णाणावरिणज्जकम्म- अरीरप्पओग- बंधे। दरियणावरणिज्जकम्म सरीरप्पओगबंधे णं भंते? कस्य कम्मस्य उदएण? गोयमा! दंगणपडिणीययाए एवंजसणाणावरणिज्जणवरदसणणामघेत्तव्वं जाव दंगणविसंवायणाजोगेणं दरियणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगणयाए कम्मस्य उदएणं जाव पओगबंधे। -भगवती सूत्र 8.9, सूत्र 98-99
अर्थ- भगवन्! ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है?
गौतम! ज्ञान की प्रत्यनीकता (विपरीतता) करने से, ज्ञान का अपलाप करने से, ज्ञान में अन्तराय डालने से, ज्ञान के प्रति द्वेष करने से, ज्ञान की आशातना करने से, ज्ञान के विसंवादन योग से और ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर–प्रयोग नाम कर्म के उदय से, ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग बंध होता है।
__ भगवन्! दर्शनावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है?
गौतम! दर्शन की प्रत्यनीकता से, इत्यादि जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के कारण कहे हैं, उसी प्रकार दर्शनावरणीय के भी जानना चाहिए, किन्तु
ज्ञानावरण कर्म