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दिखाई पड़ेगा।
प्रपंच का अर्थ होता है, जैसा नहीं है वैसा देख लेना।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अमरीका की यात्रा पर गया। न्यूयार्क की एक बड़ी सड़क पर राह के किनारे उसने एक बोर्ड लगा देखा, जिस पर लिखा था कि उन्नीस सौ अस्सी में अमरीका में कारों की संख्या पचास करोड़ हो जायेगी। ऐसा पढ़ते ही वह एकदम भागा सड़क पर खतरनाक था वैसा भागना। और एक पुलिसवाले ने उसे पकड़ा और कहा कि कहां भागे जाते हो? क्या इतनी जल्दी है ? देखते नहीं, रास्ते पर इतना ट्रैफिक है? नसरुद्दीन ने कहा, छोड़ो भी ! उन्नीस सौ अस्सी में कारों की संख्या पचास करोड़ हो जायेगी। अगर रास्ता पार करना है तो अभी ही कर लेना चाहिए ।
आदमी अपनी कामना को प्रक्षेपित कर लेता है। तुम हंसते हो क्योंकि उन्नीस सौ अस्सी तो दूर मालूम पड़ता। इतनी जल्दी क्या है? लेकिन तुमने न केवल मृत्यु तक की योजनायें बना रखी हैं, तुमने मृत्यु के बाद की भी योजनायें बना रखी हैं। तुमने यहां तो इंतजाम किया ही है, तुम स्वर्ग
भी इंतजाम कर रहे हो। यहां धन इकट्ठा कर रहे, वहां पुण्य इकट्ठा कर रहे। यहां चोरी से धन मिलता है तो चोरी से कर रहे, वहां दान देने से पुण्य के सिक्के इकट्ठे होते हैं तो दान भी कर रहे। चोर भी हो, दानी भी हो; साथ-साथ हो ।
मैंने सुना है, एक सम्राट ने एक बहुत बड़े चोर को फांसी की सजा दी। उस राज्य का नियम था कि जिसे फांसी की सजा हो उससे अंतिम समय सम्राट पूछता था, तेरी कोई आखिरी इच्छा तो नहीं? तो सम्राट ने पूछा उस महाचोर को, तेरी कोई आखिरी इच्छा तो नहीं? उसने कहा मेरी आखिरी इच्छा है, छोटी-सी इच्छा है, वह पूरी हो जाये तो मैं तृप्त मरूं।
कहा था कि इन्हें बो देना तो एक–एक मोती से लाखों मैं तो मर जाऊंगा लेकिन कोई यह फसल काटेगा। मेरे साथ ही चले जायेंगे।
मेरे पास कुछ मोती हैं। और मेरे गुरु ने मोती पैदा होंगे। तो मैं इन्हें बो देना चाहता किसी को तो यह लाभ होगा, नहीं तो ये मोती
सम्राट भी लोभ से भरा । और उसने कहा, ठीक है तुम राजमहल के बगीचे में ही बो दो। उस आदमी ने जमीन साफ की। उस आदमी ने जमीन पर हल - बखर चलाये । और फिर वह आदमी अचानक खड़ा हो गया। उसने सम्राट से कहा, आप कृपा करके यहां आ जायें क्योंकि मेरे गुरु ने कहा था, जो चोर न हो वही इन मोतियों को बोये। मैं तो चोर हूं, मैं इनको नहीं बो सकूंगा। और बोऊंगा तो ये व्यर्थ चले जायेंगे। इन मोतियों की यह खूबी है, ये उगेंगे तभी जब कोई ऐसा आदमी बोये जो अचोर है। सम्राट अपने वजीरों की तरफ देखने लगा, वजीर पुरोहित की तरफ देखने लगे, पुरोहित सेनापत की तरफ देखने लगा और सेनापति सम्राट की तरफ देखने लगा और तब सम्राट ने कहा, क्षमा करो। बीज न बोये जा सकेंगे। हम सब चोर हैं। ऐसा तो कोई आदमी नहीं है, जो चोर न हो। और सम्राट कहा, मैं समझ गया तुम्हारी बात । तुम्हारी फांसी की सजा रह की जाती है। तुम भी चोर हो, हम भी चोर हैं। तुम छोटे चोर हो, हम बड़े चोर हैं, लेकिन चोर हम सब हैं।
और वह सम्राट बड़ा दानी था। और वह चोर कहने लगा, महाराज, आप और चोर कैसे हो सकते