________________ हुए पुरुष का अभिनय] मत्स्याण्डक, मकराण्डक 71 जार, मार, पुष्पावली, पद्मपत्र, सागरतरंग, वसन्तलता, पद्मलता७३, के चित्रों का अभिनय / 3. ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, शरभ, चमर, कुजर,७४ वनलता, पद्मलता के चित्रों का अभिनय। 4. एकतोवऋ७५, द्विधावक्र, एकतश्चक्रवाल, द्विधाचक्रवाल, चक्रार्ध, चक्रवाल का अभिनय। 5. चन्द्रावलिका-प्रविभक्ति७६, सूर्यावलिका-प्रविभक्ति, वलयावलिका-प्रविभक्ति, हंसावलिकाप्रविभक्ति७७, एकावलिका-प्रविभक्ति, तारावलिका-प्रविभक्ति, मुक्तावलिका-प्रविभक्ति, कनकावलिका-प्रविभक्ति, और रत्नावलिका-प्रविभक्ति का अभिनय / 6. चन्द्रोद्गमनदर्शन और सूर्योद्गमनदर्शन का अभिनय / 7. चन्द्रागमदर्शन, सूर्यागमदर्शन का अभिनय / 8. चन्द्रावरणदर्शन, सूर्यावरणदर्शन का अभिनय / 9. चन्द्रास्तदर्शन, सूर्यास्तदर्शन का अभिनय / 10. चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षसमण्डल, गन्धर्व मण्डल के भावों का अभिनय / 11. द्रुतविलम्बित अभिनय-इसमें वृषभ और सिंह तथा घोड़े और हाथी की ललित गतियों का अभिनय / 12. सागर और नागर के प्राकारों का अभिनय / 13. नन्दा और चम्पा का अभिनय। 14. मत्स्यांड, मकरांड, जार और मार की प्राकृतियों का अभिनय / 15. क, ख, ग, घ, ङ की प्राकृतियों का अभिनय / 16. च-वर्ग की प्राकृतियों का अभिनय / 17. ट-वर्ग की प्राकृतियों का अभिनय / 71. भरत के नाट्यशास्त्र में मकर का वर्णन है। 72. सम्यग्मणिलक्षणवेदिनी लोकाद्वेदितव्यौ ! —जीवाजीवाभिगम टीका, पृष्ठ-१८९ 73. भरत के नाट्यशास्त्र में पद्म। 74. भरत के नाट्यशास्त्र में गजदंत / 75. एकतो वक्त्रं-नटानां एकस्यां दिशि धनुराकारश्रेण्या नर्तनं / द्विधातो वक्र-द्वयोः परस्पराभिमुख दिशो: धनराकारश्रेण्या नर्तनं / एकतश्चक्रवाल एकस्यां दिशि नटानां मण्डलाकारेण नर्तनं / -जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका 5, पृष्ठ-४१४ 76. चन्द्राणां प्रावलिः श्रेणि: तस्याः प्रविभक्तिः-विच्छित्तिरचनाविशेषस्तदभिनयात्मकं / -जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका 5. पृष्ठ-४१४ 77. भरत के नाट्यशास्त्र में हंसवत्र और हंसपक्ष / 78. नाट्यशास्त्र में 20 प्रकार के मण्डल बताये गये हैं। यहाँ गन्धर्वनाट्य का उल्लेख है। [ 26 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org