________________ उपसंहार] [213 (भोगे जा चुके), प्रतिसेवित (भोग-परिभोग को वस्तुओं), आविष्कर्म (प्रकट कार्यों), रहःकर्म (एकान्त में किये गुप्त कार्यो) आदि, प्रगट और गुप्त रूप से होने वाले उस-उस मन, वचन और काययोग में विद्यमान लोकवर्ती सभी जीवों के सर्वभावों को जानते-देखते हुए विचरण करेंगे। तत्पश्चात वे दढप्रतिज्ञ केवली इस प्रकार के विहार से विचरण करते हुए और अनेक वर्षों तक केवलिपर्याय का पालन कर, आयु के अंत को जानकर अपने अनेक भक्तों-भोजनों का प्रत्याख्यान व त्याग करेंगे और अनशन द्वारा बहुत से भोजनों का छेदन करेंगे और जिस साध्य की सिद्धि के लिये नग्नभाव, केशलोच, ब्रह्मचर्यधारण, स्नान का त्याग, दंतधावन का त्याग, पादुकाओं का त्याग, भूमि पर शयन करना, काष्ठासन पर सोना, भिक्षार्थ परगृहप्रवेश, लाभ-अलाभ में सम रहना, मान-अपमान सहना, दूसरों के द्वारा की जाने वाली हीलना (तिरस्कार), निन्दा, खिसना (अवर्णवाद), तर्जना (धमकी), ताड़ना, गहरे (घृणा) एवं अनुकूल-प्रतिकुल अनेक प्रकार के बाईस परीषह, उपसर्ग तथा लोकापवाद (गाली-गलौच) सहन किये जाते हैं, उस साध्य--मोक्ष की साधना करके चरम श्वासोच्छ्वास में सिद्ध हो जायेंगे, मुक्त हो जायेंगे, सकल कर्ममल का क्षय और समस्त दुःखों का अंत करेंगे। उपसंहार २८७-सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति / 287-- इस प्रकार से सूर्याभदेव के अतीत, अनागत और वर्तमान जीवन-प्रसंगों को सुनने के पश्चात् गौतम स्वामी ने कहा भगवन् ! वह ऐसा ही है जैसा आपने प्रतिपादन किया है, हे भगवन् ! वह इसी प्रकार है, जैसा आप फरमाते हैं, इस प्रकार कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदननमस्कार किया। वंदन-नमस्कार करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। २८८---णमो जिणाणं जियभयाणं / णमो सुयदेवयाए भगवतीए / णमो पण्णत्तीए भगवईए। णमो भगवो प्ररहनो पासस्स / पस्से सुपस्से पस्सवणा णमो / ग्रन्थाग्रम-२१२० / // रायपसेणइयं समत्तं // भयों के विजेता भगवान् को नमस्कार हो। भगवती श्रुत देवता को नमस्कार हो / प्रज्ञप्ति भगवती को नमस्कार हो। अर्हत् भगवान् पार्श्वनाथ को नमस्कार हो / प्रदेशी राजा के प्रश्नों के . प्रदर्शक को नमस्कार हो। ॥राजप्रश्नीयसूत्र समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org