________________ पं. र. जैनभूषण श्रीज्ञानमुनिजी महाराज श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र को ध्यान से पढ़ा। गुरुदेव पूज्यश्री आत्मारामजी म. फर्माया करते थे—'भगवद्वाणी के स्वाध्याय से, चिन्तन-मनन से अकथनीय हर्षानुभूति होती है।' पूज्य गुरुदेव की यह उक्ति ज्ञाताधर्मकथांग के स्वाध्याय-काल में साकार होती हुई अनुभव में आई / सूत्र को पढ़ कर सचमुच बड़ी प्रसन्नता हुई। श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग का अनुवाद गहरे चिन्तन और श्रम के साथ किया गया है / इस सत्य से कभी इन्कार नहीं किया जा सकता है। ....."जैनजगत् के विख्यात लेखक पण्डित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सत्र के अनुवादक हैं, विवेचक हैं। पण्डितजी की लेखनी के चमत्कार सर्वप्रसिद्ध हैं। इनकी लेखन कला में एक निराला आकर्षण है। पढ़ना आरंभ कर दें तो छोड़ने को मन नहीं करता। मैं अनुवादक पण्डितजी का तथा संस्था का धन्यवादी हूँ जिन्होंने जन-जीवन को आगमों की ज्ञानसम्पदा से मालामाल बनाने का बुद्धिशुद्ध प्रयास किया है / श्री आगमप्रकाशन समिति ब्यावर का सौभाग्य है जिसे ऐसेऐसे अनुभवी और आगमज्ञ अनुवादकों का सान्निध्य सम्प्राप्त Jain Education International For Private & Personal use only