________________ सुधर्मा सभा का वर्णन ] [91 १६२-वह प्रधान प्रासादावतंसक सभी चारों दिशाओं में ऊँचाई में अपने से प्राधे ऊँचे अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित है / अर्थात् उसकी चारों दिशामों में और दूसरे चार प्रासाद बने हुए हैं। ये चारों प्रासादावतंसक ढाई सौ योजन ऊँचे और चौड़ाई में सवा सौ योजन चौड़े हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् यहाँ करना चाहिये। ये चारों प्रासादावतंसक भी पून: चारों दिशाओं में अपनी ऊँचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से घिरे हैं / ये प्रासादावतंसक एक सौ पच्चीस योजन ऊँचे और साढ़े बासठ योजन चौड़े हैं तथा ये चारों ओर फैल रही प्रभा से हंसते हुए-से दिखते हैं, यहाँ से लेकर भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, पाठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छत्रातिछत्रों से सुशोभित है, पर्यन्त इनका वर्णन करना चाहिए। ये प्रासादावतंसक भी चारों दिशाओं में अपनी ऊँचाई से प्राधी ऊँचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित हैं / ये प्रासादावतंक साड़े बासठ योजन ऊँचे और इकतीस योजन एक कोस चौड़े हैं / इन प्रासादों के भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, ऊपर आठ मंगल, ध्वजाओं छत्रातिछत्रों आदि का वर्णन भी पूर्ववत् यहाँ करना चाहिये / विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में प्रधान प्रासादावतंसक के आस-पास की चारों दिशाओं सम्बन्धी रचना का वर्णन किया है / वह प्रधान प्रासाद अपनी आस-पास की रचना के बीचों-बीच है और चारों दिशाओं में बने अन्य चार प्रासादों की अपेक्षा सबसे अधिक ऊँचा और लम्बा-चौड़ा है तथा शेष पार्श्ववर्ती प्रासाद अपने-अपने से पूर्व के प्रासादों की अपेक्षा ऊँचाई और चौड़ाई में उत्तरोत्तर आधेप्राधे हैं / अर्थात मूल प्रासादावतंसक की अपेक्षा उत्तरवर्ती अन्य-अन्य प्रासाद शिखर से लेकर तलहटी तक पर्वत के आकार के समान क्रमशः अर्ध, चतुर्थ और अष्ट भाग प्रमाण ऊँचे और चौड़े हैं। सुधर्मा सभा का वर्णन १६३-तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्त उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं सभा सुहम्मा पण्णता, एमं जोयणसयं पायामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खम्भेणं, बावरि जोयणाई उड्ढ उच्चत्तणं, अणेगखम्भ "जाव' अच्छरगण... पासादीया। १६३---उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और वहत्तर योजन ऊँची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैंकड़ों खंभों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सरानों से व्याप्त अतीव मनोहर है। १६४--समाए णं सुहम्माए तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता तंजहा-पुरस्थिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेणं / ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढ़ उच्चत्तेणं, प्रद जोयणाई विक्खम्भेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाववणमालाप्रो / तेसि णं दाराणं उरि अट्ठ मङ्गलगा झया छत्ताइछत्ता। तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं पत्तयं मुहमण्डवे पण्णते, ते ण मुहमण्डवा एग जोयणसयं मायामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं, वण्णो सभाए सरिसो। सिणं मुहमण्डवाणं तिदिसि ततो दारा पण्णत्ता, तंजहा पुरस्थिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेणं / ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढे उच्चत्तणं, अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया 1-2 देखें सूत्र संख्या 45 / 3. देखें सूत्र संख्या 121 से 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org