________________ 208 ] [ राजप्रश्नीयसूत्र तए णं से कलायरिए तं दढपसिण्णं दारगं लेहाइयानो गणियप्पहाणाम्रो सउणरुयपज्जवसाणाम्रो बावत्तरि कलाप्रो सुत्तो प्रत्थरो य गंथयो य करणनो य सेहावेहि य पसिक्खावेहि य। . तं जहा-लेहं गणियं रूवं नट्ट गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूयं जणवयं पासगं अट्ठावयं पारेकव्वं दगमट्टियं अन्नविहिं पाणविहिं वस्यविहि विलेवणविहि सयणविहि प्रज्जं पहेलियं मागहियं णिहाइयं गाहं गीइयं सिलोग हिरण्णत्ति सुवण्णत्ति प्राभरणविहि तरुणीपडिकम्मं इस्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं चक्षकलक्खणं दंडलक्षणं असिलक्षणं मणिलक्षणं कागणिलक्खणं वत्थुविज णगरमाणं खंधवारं माणवारं पडिचारं बहं चक्कवूहं गरुलवूहं सगडवह जुद्ध नियुद्ध जुद्धजुद्ध अद्विजुद्ध मुट्ठिजुद्ध बाहुजुद्ध लयाजुद्ध ईसत्थं छरुष्पवायं धणुवेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं मणिपागं धाउपागं सुत्तखेड्ड वट्टखेड्डं णालियाखेड्डं पत्तच्छेज्ज कडगच्छेज्जं सज्जीवनिज्जीवं सउणरुयं-इति / २८२-तत्पश्चात् दृढ़प्रतिज्ञ बालक को कुछ अधिक आठ वर्ष का होने पर कलाशिक्षण के लिये माता-पिता शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में स्नान, बलिकर्म, कौतुक-मंगल-प्रायश्चित्त कराके और अलंकारों से विभूषित कर ऋद्धि-वैभव, सत्कार, समारोहपूर्वक कलाचार्य के पास ले जायेंगे। तब कलाचार्य उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को गणित जिनमें प्रधान है ऐसी लेख (लिपि) आदि शकुनिरुत (पक्षियों के शब्द-बोली) तक की बहत्तर कलाओं को सूत्र से, अर्थ से (विस्तार से व्याख्या करके), ग्रन्थ से तथा प्रयोग से सिद्ध करायेंगे, अभ्यास करायेंगे / वे कलायें इस प्रकार हैं 1. लेखन, 2. गणित, 3. रूप सजाने की कला, 4. नाट्य (अभिनय) अथवा नृत्य करने की कला, 5. संगीत, 6. वाद्य बजाना, 7. स्वर जानना, 8. वाद्य सुधारना अथवा ढोल आदि बजाने की कला, ह. संगीत में गीत और वाद्यों के सर-ताल की समानता को जानना.१०. द्यत-जय दुमा खेलना, 11. लोगों के साथ वार्तालाप और वाद-विवाद करना, 12. पासों से खेलना, 13. चौपड़ खेलना, 14. तत्काल काव्य-कविता की रचना करना, 15. जल और मिट्टी को मिलाकर वस्तु निर्माण करना, अथवा जल और मिट्टी के गुणों की परीक्षा करना, 16. अन्न उत्पन्न करने अथवा भोजन बनाने की कला, 17. नया पानी उत्पन्न करना अथवा औषधि आदि के संयोग-संस्कार से पानी को शुद्ध करना, स्वादिष्ट पेय पदार्थों का बनाना, 18. नवीन वस्त्र बनाना, वस्त्रों को रंगना, सीना और पहनना, 19 विलेपनविधि-शरीर पर लेप करने की विधि, 20. शय्या बनाना और शयन करने की विधि जानना, 21. मात्रिक छन्दों को बनाना और पहचानना, 22. पहेलियां बनाना और बुझाना, 23. मागधिक-मागधी भाषा में गाथा-छन्द प्रादि बनाना, 24. निद्रायिका नींद में सुलाने की कला, 25. प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, 26. गीति-छंद बनाना, 27. श्लोक (अनुष्टुप छंद) बनाना, 28. हिरण्ययुक्ति-चांदी बनाना और चांदी शुद्ध करना, 29. स्वर्णयुक्ति स्वर्ण बनाना और स्वर्ण शुद्ध करना, 20. आभूषण-अलंकार बनाना, 31. तरुणीप्रतिकर्म-स्त्रियों का शृंगार-प्रसाधन करना, 32. स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानना, 33. पुरुष के लक्षण जानना, 34. अश्व के लक्षण जानना, 35. हाथी के लक्षण जानना, 36. मुर्गों के लक्षण जानना, 37. छत्रलक्षण जानना, 38. चक्र-लक्षण जानना, 36. दंड-लक्षण जानना, 40, असि-(तलवार) लक्षण जानना, 41. मणि-लक्षण जानना, 42. काकणी-(रत्न-विशेष) लक्षण जानना, 43. वास्तुविधा-गृह, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org