________________ कलाचार्य का सम्मान, दृढ़प्रतिज्ञ की भोगसमर्थता] [209 गृहभूमि के गुण-दोषों को जानना, 44. नया नगर बसाने आदि की कला, 45. स्कन्धावार-सेना के पड़ाव की रचना करने की कला, 46. मापने-नापने-तोलने के साधनों को जानना, 47. प्रतिचारशत्रु सेना के सामने अपनी सेना को चलाना, 48. व्यूह-युद्ध में शत्रु सेना के समक्ष अपनी सेना का मोर्चा बनाना, 46. चक्रव्यूह-चक्र के प्रकार की मोर्चाबन्दी करना, 50. गरुडव्यूह-गरुड के आकार की व्यूहरचना करना, 51. शकटव्यूह रचना, 52. सामान्य युद्ध करना, 53. नियुद्धमल्लयुद्ध करने की कला, कुश्ती लड़ना, 54. युद्ध-युद्ध-शत्रु सेना की स्थिति को जानकर युद्धविधि को बदलने की कला अथवा घमासान युद्ध करना, 55. अट्रि (यष्ठि-लाठी या अस्थि-हड्डी) से युद्ध करना, 56. मुष्ठियुद्ध करना, 57. बाहुयुद्ध करना, 58. लतायुद्ध करना, 59. इष्वस्त्र-शस्त्रबाग बनाने की कला अथवा नागबाण आदि विशिष्ट बाणों के प्रक्षेपण की विधि, 60. तलवार चलाने की कला, 61. धनुर्वेद--धनुष-बाण संबन्धी कौशल, 62. चांदी का पाक बनाना, 63. सोने का पाक बनाना, 64. मणियों के निर्माण की कला अथवा मणियों की भस्म आदि औषधि बनाना, 65. धातुपाक-औषधि के लिये स्वर्ण आदि धातुओं की भस्म बनाना, 66. सूत्रखेल-रस्सी पर खेल-तमाशे, क्रीडा करने की कला, 67. वृत्तखेल-क्रीडाविशेष, 68 नालिकाखेल-चूत-जुआविशेष, 66. पत्र को छेदने की कला, 70. पार्वतीय भूमि छेदने की कला, 71. मूछित को होश में लाने और अमूच्छित को मृततुल्य करने की कला, 72 काक, घूक आदि पक्षियों की बोली और उससे अच्छेबुरे शकुन का ज्ञान करना। कलाचार्य का सम्मान २८३–तए णं से कलारिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयानो गणियप्पहाणाम्रो सउणस्यपज्जवसाणाम्रो बावरिं कलामो सुत्तमो य अत्यनो य गंथनो य करणो य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवहिति / तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति विउलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलइस्संति विउलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलइत्ता पडिविसज्जेहिंति / २८३-तत्पश्चात् कलाचार्य उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को गणित प्रधान, लेखन (लिपि) से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाओं को सूत्र (मूल पाठ) से, अर्थ (व्याख्या) से, ग्रन्थ एवं प्रयोग से सिखला कर, सिद्ध कराकर माता-पिता के पास ले जायेंगे / तब उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक के माता-पिता विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाध रूप चतुर्विध ग्राहार, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों से कलाचार्य का सत्कार, सम्मान करेंगे और के योग्य विपुल प्रीतिदान (भेंट) देंगे / जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान देकर विदा करेंगे। दृढप्रतिज्ञ की भोगसमर्थता २८४---तए णं से दढपतिण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते बावरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहए अट्ठारसविहदेसिप्पगारमासाबिसारए गोयरई गंधवणट्टकुसले सिंगारागारचारुवेसे संगयगयहसियभणियचिट्ठियविलासनिउणजुत्तोवयारकुसले हयजोहो गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी प्रलंभोगसमत्थे साहस्सीए विधालचारी यावि भविस्सइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org