Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 249
________________ हरुप्रतिज्ञ का लालन-पालन, कलाशिक्षण ] [207 7. प्रचंक्रमण (पैरों चलना-डग भरना और शब्दोच्चारण करना), 8. कर्णवेधन 9. संवत्सर प्रतिलेख (प्रथम वर्ष का जन्मोत्सव) और 10. चूलोपनयन (मुडनोत्सव-झड़ ला उतारना) आदि तथा अन्य दूसरे भी बहुत से गर्भाधान, जन्मादि संबन्धी उत्सव भव्य समारोह के साथ प्रभावक रूप में करेंगे। दृढप्रतिज्ञ का लालन-पालन __२८१-तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिविखत्ते-खीरधाईए-मंडणधाईए-मज्जणधाईएअंकधाईए-कोलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहि, चिलाइयाहि, वामणियाहि, वडभियाहि, बब्बराहि बउसियाहिं, जोण्हियाहि, पण्ण वियाहिं, ईसिणियाहि, वारुणियाहिं, लासियाहि, लाउसियाहि, दमिलीहि, सिंहलीहि, पुलिदीहि, आरबीहि, पक्कणीहि, बहलोहि, मुरंडीहि, सबरीहि, पारसीहि, णाणावेसी-विदेसपरिमंडियाहि इंगियचितियपत्थियवियाणाहिं सदेसणेवत्थगहियवेसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कवालतरुणिवंदपरियालपरिवुडे वरिसधरकंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थानो हत्थं साहरिज्ज. माणे उपनचिज्जमाणे अंकाप्रो अंकं परिभुज्जमाणे उवगिज्जेमाणे उवलालिज्जमाणे उवगूहिज्जमाणे अवतासिज्जमाणे परियंदिज्जमाणे परिचु बिज्जमाणे रम्मेसु मणिकोट्टिमतलेसु परंगमाणे गिरिकंदरमल्लोणे विव चंपगवरपायवे णिव्याघायंसि सुहंसुहेण परिवढिस्सइ। २८१-उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु 1. क्षीरधात्री-दूध पिलानेवाली धाय, 2. मंडनधात्रीवस्त्राभूषण पहनाने वाली धाय, 3. मज्जनधात्री-स्नान कराने वाली धाय, 4, अंकधात्री--गोद में लेने वाली धाय और 5. क्रीडापनधात्री-खेल खिलाने वाली धाय-इन पांच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित (मुख आदि की चेष्टा), चितित (मानसिक विचार), प्रार्थित (अभिलषित) को जानने वालीं, अपने-अपने देश के वेष को पहनने वालीं, निपुण, कुशल-प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा (कुबड़ी), चिलातिका (चिलात-किरात नामक देश में उत्पन्न), वामनी (चीनी), वडभी (बड़े पेट वाली), बर्बरी (बर्बर देश की), बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविका (पल्हव देश की), ईसिनिका, वारुणिका (वरुण देश की), लासिका (तिब्बत देश की), लाकुसिका (लकुस देश की), द्रावड़ी (द्रविड़ देश की), सिंहली (सिंहल देश, लंका की), पुलिंदी (पुलिंद देश की), आरबी (अरब देश की), पक्कणी (पक्कण देश की), बहली (बहल देश को), मुरण्डी (मुरंड देश की): शबरी (शबर देश की), पारसी (पारस देश की) आदि अनेक देश-विदेशों की तरुण दासियों एवं वर्षधरों (प्रयोग द्वारा नपुसक बनाये हुए पुरुषों), कंचुकियों और महत्तरकों (अन्तपुर के कार्य की चिन्ता रखने वालों) के समुदाय से परिवेष्टित होता हुआ, हाथों ही हाथों में लिया जाता, दुलराया जाता, एक गोद से दूसरी गोद में लिया जाता, गा-गाकर बहलाया जाता, क्रीड़ा आदि के द्वारा लालन-पालन किया जाता, लाड़ किया जाता, लोरियां सुनाया जाता, चुम्बन किया जाता और रमणीय मणिजटित प्रांगण में चलाया जाता हग्रा व्याघात रहित गिरि-गुफा में स्थित श्रेष्ठ चंपक वृक्ष के समान सुखपूर्वक दिनोंदिन परिवर्धित होगा-बढ़ेगा। दृढ़प्रतिज्ञ का कलाशिक्षण २८२-तए णं तं दढपतिण्णं दारगं अम्मापियरो सातिरेगप्रवासजायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणणखत्तमुहत्तंसि व्हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगलपायच्छित्तं सम्बालंकारविभूसियं करेत्ता महया इड्डीसक्कारसमुदएणं कलायरियस्स उवणेहिति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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