________________ 128] [राजप्रश्नीयसूत्र २०६–सूर्याभदेव के समस्त चरित को सुनने के पश्चात् भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर से निवेदन किया प्र.-भदन्त ! सूर्याभदेव की भवस्थिति कितने काल की है ? उ.----गौतम ! सूर्याभदेव की भवस्थिति चार पल्योपम की है / प्र.-भगवन् ! सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों की स्थिति कितने काल की है। उ.--गौतम ! उनकी चार पल्योपम की स्थिति है। यह सूर्याभ देव महाऋद्धि, महाद्युति, महान् बल, महायश, महासौख्य और महाप्रभाव वाला है। भगवान् के इस कथन को सुनकर गौतम प्रभु ने आश्चर्य चकित होकर कहा-अहो भदन्त ! वह सूर्याभदेव ऐसा महाऋद्धि, यावत् महाप्रभावशाली है / उन्होंने पुनः प्रश्न किया भगवन् ! सूर्याभदेव को इस प्रकार की वह दिव्य देव ऋषि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवप्रभाव कैसे मिला है ?. उसने कैसे प्राप्त किया है ? किस तरह से अधिगत किया है, स्वामी बना है ? वह सूर्या भदेव पूर्वभव में कौन था ? उसका क्या नाम और गोत्र था ? वह किस ग्राम, नगर, निगम (व्यापारप्रधान नगर) राजधानी, खेट (ऊँचे प्राकार से वेष्टित नगर) कर्बट (छोटे प्रकार से घिरी वस्ती), मडंब (जिसके आसपास चारों ओर एक योजन तक कोई दूसरा गाँव न हो), पत्तन, द्रोणमुख (जल और स्थलमार्ग से जुड़ा नगर), प्राकर (खानों वाला स्थान, नगर), पाश्रम (ऋषिमहर्षि प्रधान स्थान) संबाह (संबाध-जहाँ यात्री पड़ाव डालते हों, ग्वाले आदि बसते हों) संनिवेश सामान्य जनों की बस्ती का निवासी था ? इसने ऐसा क्या दान में दिया, ऐसा क्या अन्त-प्रान्तादि विरस आहार खाया, ऐसा क्या कार्य किया, कैसा आचरण किया और तथारूप श्रमण अथवा माहण से ऐसा कौनसा धार्मिक आर्य सुवचन सुना कि जिससे सूर्याभदेव ने वह दिव्य देवद्धि यावत्देवप्रभाव उपाजित किया है, प्राप्त किया है और अधिगत किया है ? केकय अर्ध जनपद और प्रदेशी राजा २०७-'गोयमाई' समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम पामतेत्ता एवं क्यासी एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइप्रद्ध नाम जणवए होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्ध सब्बोउयफलसमिद्ध रम्मे नंदणवणपगासे पासाईए जाव (दरिसणिज्जे, अभिरूवे) पडिरूवे / ___तत्थ णं केयइबद्ध जणवए सेयविया गाम नगरी होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धा जाव' पडिरूवा। 1. देखें सूत्र संख्या 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org