________________ चित्त सारथी का श्रावस्ती की ओर प्रयाण] [135 तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने चित्त सारथी को आज्ञा की आज्ञा सुनकर आज्ञानुरूप शीघ्र हो छत्रसहित यावत् युद्ध के लिये सजाये गये चातुर्घटिक अश्वरथ को जोत कर उपस्थित कर दिया और प्राज्ञा वापस लौटाई, अर्थात् रथ तैयार हो जाने की सूचना दी। कौटुम्बिक पुरुषों का यह कथन सुनकर चित्त सारथी हृष्ट-तुष्ट हुआ यावत् विकसितहृदय होते हुए उसने स्नान किया, बलि कर्म (कुलदेवता की अर्चना की, अथवा पक्षियों को दाना डाला), कौतुक (तिलक आदि) मंगल-प्रायश्चित्त किये और फिर अच्छी तरह से शरीर पर कवच बांधा / धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई, गले में ग्रे वेयक और अपने श्रेष्ठ संकेतपट्टक को धारण किया एवं आयुध तथा प्रहरणों को ग्रहण कर, वह महार्थक यावत् उपहार, लेकर वहाँ प्राया जहाँ चातुर्घट अश्वरथ खड़ा था। आकर उस चातुर्घट अश्वरथ पर आरूढ हुआ। ___ तत्पश्चात् सन्नद्ध यावत् प्रायुध एवं प्रहरणों से सुसज्जित बहुत से पुरुषों से परिवृत्त हो, कोरंट पुष्प की मालानों से विभूषित छत्र को धारण कर, सुभटों और रथों के समूह के साथ अपने घर से रवाना हया और सेयविया नगरी के बीचोंबीच से निकल कर सुखपूर्वक रात्रिवि प्रात: कलेवा, अति दूर नहीं किन्तु पास-पास अन्तरावास (पड़ाव) करते, और जगह-जगह ठहरतेठहरते केकयाधं जनपद के बीचोंबीच से होता हुआ जहाँ कुणाला जनपद था, जहाँ श्रावस्ती नगरी थी, वहाँ आ पहुँचा / वहाँ आकर श्रावस्ती नगरी के मध्य भाग में प्रविष्ट हुआ। इसके बाद जहाँ जितशत्रु राजा का प्रासाद था और जहाँ राजा की बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आकर घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया और फिर रथ से नीचे उतरा। तदनन्तर उस महार्थक यावत् भेंट को लेकर प्राभ्यन्तर उपस्थानशाला (बैठक) में जहाँ जितशत्रु राजा बैठा था, वहाँ आया। वहाँ दोनों हाथ जोड़ यावत् जय-विजय शब्दों से जितशत्रु राजा का अभिनन्दन किया और फिर उस महार्थक यावत् उपहार को भेंट किया। तब जितशत्रु राजा ने चित्त सारथी द्वारा भेंट किये गये इस महार्थक यावत् उपहार को स्वीकार किया एवं चित्त सारथी का सत्कार-संमान किया और विदा करके विश्राम करने के लिए राजमार्ग पर आवास स्थान दिया / विवेचन—ऊपर के सूत्र में बताया कि श्रावस्ती का राजा जितशत्रु सेयविया के राजा प्रदेशी का अंतेवासी था अर्थात् अधीनस्थ राजा था। तब प्रश्न होता है कि अधीनस्थ राजा होते हुए भी राजा प्रदेशी का जितशत्रु राजा को भेंट भेजने और चित्त सारथी को श्रावस्ती जाकर राजव्यवस्था देखने के संकेत का क्या कारण था ? प्रतीत होता है, अनेक बार अधीनस्थ राजा अपने से मुख्य राजा को अपेक्षा बल, सेना, कोष और कितनी ही दूसरी बातों में बढ़ने का गूप्त प्रयास करते हैं और प्रच्छन्न रूप से उसे अपदस्थ करके स्वयं उसके राज्य पर अधिकार करने आदि का प्रयत्न करते हैं / इस स्थिति का पता जब उस मुख्य राजा को लगता है, तब वह राजनीति का अवलंबन लेकर उसकी खोजबीन करने का प्रयास करता है / इस प्रयास के दूसरे-दूसरे उपायों की तरह भेंट भेजना भी एक उपाय है / यही बात प्रदेशी राजा द्वारा कहे गये इन शब्दों से विदित होती है-- __ 'तुम यह भेंट दे आमो तथा जितशत्रु राजा के साथ रहकर स्वयं वहाँ की शासनव्यवस्था, राजा की दैनिक चर्या, राजनीति और व्यवहार को देखो, सुनो और अनुभव करो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org