Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ तज्जीव-तच्छरीरवाद मंडन-खंडन ] [ 186 जहा जहा णं एयस्स पुरिसस्स वामं वामेणं जाब विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिस्सामि तहा तहा णं अहं नाणं च नाणोवलंभं च करणं च करणोवलंभं च दंसणं च सणोवलंभं च जीवं च जीवोवलंभं च उवलभिस्सामि, तं एएणं अहं कारणेणं देवाणुप्पियाणं वामं वामेणं जाब विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिए। २६२-तब प्रदेशी राजा ने अपनी मनोभावना व्यक्त करते हुए केशी कुमारश्रमण से कहा--- बात यह है-भदन्त ! मेरा आप देवानुप्रिय मे जब प्रथम ही वार्तालाप हुआ तभी मेरे मन में इस प्रकार का विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुया कि जितना-जितना और जैसे-जैसे मैं इस पुरुष के विपरीत यावत् सर्वथा विपरीत व्यवहार करूंगा, उतना-उतना और वैसे-वैसे मैं अधिक-अधिक तत्त्व को जानूगा, ज्ञान प्राप्त करूगा, चारित्र को, चारित्रलाभ को, तत्त्वार्थश्रद्धा रूप दर्शन-सम्यक्त्व को, सम्यक्त्व लाभ को, जीव को, जोव के स्वरूप को समझ सकूगा / इसी कारण आप देवानुप्रिय के प्रति मैंने विपरीत यावत् अत्यन्त विरुद्ध व्यवहार किया है / २६३-तए णं केसी कुमारसमणे पएसीरायं एवं वयासीजाणासि णं तुम पएसी ! कई क्वहारगा पण्णता? हंता जाणामि / चतारि ववहारगा पण्णत्ता-१ वेइ नामेगे जो सपणवेइ। 2 सन्नवेइ नामेगे नो देइ। 3 एगे देइ वि सन्नवेइ वि। 4 एगे णो देइ णो सण्णवेइ / जाणासि णं तुमं पएसी ! एएसि चउण्हं पुरिसाणं के ववहारी के अव्ववहारी ? हंता जाणामि / तत्थ णं जे से पुरिसे दे णो सण्णवेइ, से गं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जे से पुरिसे णो देइ सण्णवेइ, से गं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जे से पुरिसे देइ वि सन्नवेइ वि से पुरिसे यवहारी / तस्थ णं जे से पुरिसे णो देइ णो सन्नवेइ से णं अव्ववहारी। एवामेव तुमं पि ववहारी, णो चेव णं तुम पएसी अन्ववहारी। २६३–प्रदेशी राजा की इस भावना को सुनकर केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा-- हे प्रदेशी ! जानते हो तुम कि व्यवहारकर्ता कितने प्रकार के बतलाये गए हैं ? प्रदेशी--हां, भदन्त ! जानता हूँ कि व्यवहारकों के चार प्रकार है-१. कोई किसी को दान देता है, किन्तु उसके साथ प्रीतिजनक वाणी नहीं बोलत! / 2. कोई संतोषप्रद बातें तो करता है, किन्तु देता नहीं हैं। 3. कोई देता भी है और लेने वाले के साथ सन्तोषप्रद वार्तालाप भी करता है और 4. कोई देता भी कुछ नहीं और न संतोषप्रद बात करता है। केशी कुमारश्रमण--हे प्रदेशी ! जानते हो तुम कि इन चार प्रकार के व्यक्तियों में से कौन व्यवहारकुशल है और कौन व्यवहारशून्य है-व्यवहार को नहीं समझने वाला है ? / प्रदेशी-हाँ जानता हूँ / इनमें से जो पुरुष देता है, किन्तु संभाषण नहीं करता, वह व्यवहारी है। जो पुरुष देता नहीं किन्तु सम्यग् आलाप (बातचीत) से संतोष उत्पन्न करता है (दिलासा देता है), धीरज बंधाता है, वह व्यवहारी है / जो पुरुष देता भी है और शिष्ट वचन भी कहता है, वह व्यवहारी है, किन्तु जो न देता है और न मधुर वाणी बोलता है, वह अव्यवहारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288