________________ 192] [ राजप्रश्नीयसूत्र से णणं भंते ! हत्थीउ कुथू अप्पकम्मतराए चेव अपकिरियतराए चेव अध्यासवतराए चेव एवं प्राहार-नोहार-उस्सास-नीसास-इड्ढोए महज्जुइअध्यतराए चेव, एवं च कुथुप्रो हत्थी महाकम्मतराए चेव महाकिरिय० जाब ? / हता पएसी ! हत्थीयो कुथू अप्पकम्मतराए चेव कुथुप्रो वा हत्थी महाकम्मतराए चैव तं चेव / कम्हा णं भंते ! हथिस्स य कुथुस्स य समे चेव जीवे ? पएसी! जहा णाम ए कूडागारसाला सिया जाब गंभोरा, अह णं केइ पुरिसे जोइं व दीवं व गहाय तं कूडागारसालं अंतो अंतो अणुपविसइ तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घनिचियनिरंतराणि णिच्छिडडाई दवारवयणाई पिडेति, तीसे कडागारसालाए बदमझदेसभाए तं पईवं पलीवेज्जा तए णं से पईवे तं कडागारसालं अंतो अंतो प्रोभासइ उज्जोवेइ तवति पभासंह, णो चव ण बाहि / अह णं पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा, तए णं से पईवे तं इड्डरयं अंतो प्रोभासे इ, णो चेव णं इड्डरगस्स बाहिं, जो चेव णं कूडागारसालाए बाहि, एवं गोकिलिजेणं, पछिपिडएणं, गंडमाणियाए, प्राढ़तेणं, प्रद्धाढतेणं, पत्थएणं, अद्धपत्थएणं, कुलवेणं, अद्धकुलवेणं, चाउम्भाइयाए, अट्ठभाइयाए, सोलसियाए, बत्तीसियाए, चउसट्टियाए, दीवचंपएणं तए णं से पदोवे दोवचंपगस्स अंतो प्रोभासति, नो चेव णं दीवचंपगस्स बाहि, नो चेव णं चउसट्टियाए बाहि, णो चेव गं कूडागारसालं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहि / एवामेव पएसी ! जीवे वि जं जारिसयं पुवकम्मनिबद्ध बोंदि णिव्वत्तेइ तं असंखेजेहि जीवपदेसेहि सचित्तं करेइ खुड्डियं वा महालियं वा, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी ! जहा-अण्णो जोवो तं चेवणं / २६५–तत्पश्चात् प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से कहा--भंते ! क्या हाथी और कुथु का जीव एक-जैसा है ? केशी कुमारश्रमण -हाँ, प्रदेशी। हाथी और कुथु का जीव एक-जैसा है, समान प्रदेश परिमाण वाला है, न्यूनाधिक प्रदेश-परिमाण वाला नहीं है / प्रदेशी-हे भदन्त ! हाथो से कुथु अल्पकर्म (आयुष्यकर्म), अल्पक्रिया, अल्प प्राणातिपात ग्रादि आश्रव वाला है, और इसी प्रकार कुथु का ग्राहार, निहार, श्वासोच्छ्वास, ऋद्धि-शारीरिकबल, द्युति आदि भी अल्प है और कुथु से हाथी अधिक कर्मवाला, अधिक क्रियावाला यावत् अधिक द्युति संपन्न है ? केशी कुमारश्रमण-हाँ प्रदेशी ! ऐसा ही है-हाथी से कुथु अल्प कर्मवाला और कुथु से हाथी महाकर्मवाला है। प्रदेशी-तो फिर भदन्त ! हाथी और कुथु का जीव समान परिमाण वाला कैसे हो सकता है ? केशी कुमारश्रमण-हाथी और कुथु के जीव को समान परिमाण वाला ऐसे समझा जा सकता है-हे प्रदेशी ! जैसे कोई कूटाकार (पर्वतशिखर के आकार-जैसी) यावत् विशाल एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org