________________ 112 ] [राजप्रश्नीयसूत्र पवत्तं संकुचियपसारियं, रियारियं भंतसंभंतणामं दिव्यं णट्टविहि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा चउन्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा–दिढ़तियं पाउंतियं-सामंतोवणिवाइयं-लोगअंतोमज्झावसाणियं / अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पोणेति, प्रगतिया लासेंति, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया विणंति, तंडवेंति, अप्पेगतिया घग्गंति, अप्फोडेंति, अप्पेगतिया अप्फोति, वगंति, अप्पे०' तिवई छिदंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया हथिगुलगुलाइयं करेति, अप्पेगतिया रह-घणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसिय-हत्थिगुलगुलाइय-रहघणघणाइयं करेंति, / उच्छलेंति, अप्पेगतिया पोच्छलेंति. अप्पेगतिया उक्किद्रियं करेंति, 02 उच्छलेंतिपोच्छलेंति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अप्पेगतिया उवयंति, अप्पेगतिया उप्पयंति, अप्पेगतिया परिवयंति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अग्वेगइया सोहनायंति अप्पेगतिया दद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति अप्पे० तिन्नि वि, अप्पेगतिया गज्जंति, अप्पेगतिया विज्जुयायंति, अप्पेगल्या वासं वासंति, अप्पेगतिया तिन्निवि करेंति, अप्पेगतिया जलंति अप्पेगतिया तवंति, अप्पेगतिया पतति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अप्पेगतिया हक्कारेंति अप्पेगतिया थुक्कारेति अप्पेगतिया धक्कारेंति, अप्पेगतिया साइं साई नामाइं साहेति, अप्पेगतिया चत्तारि वि, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं करेंति, अप्पेगतिया देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, अप्पेमइया देवा कहकहगं करेंति, अप्पेगतिया देवा दुहदुहगं करेंति, अप्पेगतिया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवसन्तिवायं-देवुज्जोयं-देवक्कलियं-देवकहकहगं-देवदुहदुहगं-चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सयसहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगतिया कलसहत्थगया जाव धूवकडुच्छयहत्थगया हट्ठ-तुट्ठ जाव हियया सव्वतो समंता प्राहावंति परिधावति / १९२-इस प्रकार के महिमाशाली महोत्सवपूर्वक जब सूर्याभदेव का इन्द्राभिषेक हो रहा था, तब कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान में इस प्रकार से झरमर-झरमर विरल नन्हीं-नन्हीं बूदों में अतिशय सुगंधित गंधोदक की वर्षा बरसाई कि जिससे वहाँ को धुलि दब गई, किन्तु जमीन में पानी नहीं फैला और न कीचड़ हुआ। कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान को झाड़-बुहार कर हतरज, नष्टरज, भ्रष्टरज, उपशांतरज और प्रशांतरज वाला बना दिया। कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान की गलियों, बाजारों और राजमार्गों को पानी से सींचकर, कचरा वगैरह झाड़-बुहार कर और गोबर से लीपकर साफ किया। कितने ही देवों ने मंच बनाये एवं मंचों के ऊपर भी मंचों की रचना कर सूर्याभ विमान को सजाया। कितने ही देवों ने विविध प्रकार की रंग-बिरंगी ध्वजारों, पताकातिपताकाओं से मंडित किया / कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान को लीप-पोतकर स्थान-स्थान पर सरस गोरोचन और रक्त दर्दर चंदन के हाथे लगाये। कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान के द्वारों को चंदनचर्चित कलशों से बने तोरणों से सजाया। कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान को ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लंबी-लंबी गोल मालाओं से विभूषित किया। कितने ही देवों ने पंचरंगे सुगंधित पुष्पों को बिखेर कर मांडने मांडकर सुशोभित किया / कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान को कृष्ण अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुष्क तुरुष्क और धूप की मघमघाती सुगंध से मनमोहक बनाया / कितने ही देवों ने सूर्याभ विमान को सुरभि गंध से व्याप्त कर सुगंध की गुटिका जैसा बना दिया। किसी ने चाँदी की वर्षा बरसाई तो किसी ने सोने की, रत्नों को, बज्र रत्नों को, पुष्पों की, 1. अप्पे. शब्द 'अपेगतिया' का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org