________________ अभिषेककालीन देवोल्लास] [113 फलों की, पुष्पमालाओं की, गंध द्रव्यों की, सुगंधित चूर्ण की और किसी ने आभूषणों की वर्षा बरसाई। कितने ही देवों ने एक दूसरे को भेंट में चांदी दी। इसी प्रकार से किसी ने आपस में एक दूसरे को स्वर्ण, रत्न, पुष्प, फल, पुष्पमाला, सुगंधित चूर्ण, वस्त्र, गंध द्रव्य और आभूषण भेंट रूप में दिये। कितने ही देवों ने तत, वितत, घन और शुषिर, इन चार प्रकार के वाद्यों को बजाया। कितने ही देवों ने उत्क्षिप्त, पादान्त, मंद एवं रोचितावसान ये चार प्रकार के संगीत गाये। किसी ने द्रुत नाट्यविधि का प्रदर्शन किया तो किसी ने विलंबित नाट्यविधि का एवं द्रुतविलंबित नाट्यविधि और किसी ने अंचित नाट्यविधि दिखलाई। कितने ही देवों ने आरभट, कितने ही देवों ने भसोल, कितने ही देवों ने आरभट-भसोल, कितने ही देवों ने उत्पात-निपातप्रवृत्त, कितने ही देवों ने संकुचितप्रसारित-रितारित और कितने ही देवों ने भ्रांत-संभ्रान्त नामक दिव्य नाट्यविधि प्रदर्शित की। किन्हीं किन्हीं देवों ने दार्टान्तिक, प्रात्यान्तिक, सामन्तोपनिपातिक और लोकान्तमध्यावसानिक इन चार प्रकार के अभिनयों का प्रदर्शन किया। साथ ही कितने ही देव हर्षातिरेक से बकरे-जैसी बुकबुकाहट करने लगे। कितने ही देवों ने अपने शरीर को फुलाने का दिखावा किया ! कितनेक नाचने लगे, कितनेक हक-हक की आवाजें लगाने लगे। कितने ही लम्बी-लम्बी दौड़ दौड़ने लगे। कितने ही गुनगुनाने लगे। कितने ही तांडव नृत्य करने लगे। कितने ही उछलने के साथ ताल ठोकने लगे और कितने ही ताली बजा बजाकर कूदने लगे / कितने ही तीन पैर की दौड़ लगाने लगे, कितने हो घोड़े जैसे हिनहिनाने लगे। कितने ही हाथी जैसी गुलगुलाहट करने लगे। कितने ही रथ जैसी घनघनाहट करने लगे और कितने ही कभी घोड़ों की हिनहिनाहट, कभी हाथी को गुलगुलाहट और रथों की घनघनाहट जैसी आवाजें करने लगे। कितनेक ने ऊँची छलांग लगाई, कितनेक और अधिक ऊपर उछले। कितने ही हर्षध्वनि करने लगे। हर्षित हो किलकारियां करने लगे। कितने उछले और अधिक ऊपर उछले और साथ ही हर्षध्वनि करने लगे। कोई ऊपर से नीचे, कोई नीचे से ऊपर और कोई लंबे कूदे। किसी ने नीची-ऊँची और लंबी-तीनों तरह की छलांगें मारी। कितनेक ने सिंह जैसी गर्जना की, कितनेक ने एक दूसरे को रंग-गुलाल से भर दिया, कितनेक ने भूमि को थपथपाया और कितनेक ने सिंहनाद किया, रंग-गुलाल उड़ाई और भूमि को भी थपथपाया / कितने ही देवों ने मेघों की गड़गड़ाहट, कितने ही देवों ने बिजली की चमक जैसा दिखावा किया और किन्हीं ने वर्षा बरसाई। कितने ही देवों ने मेघों के गरजने चमकने और बरसने के दश्य दिखाये। कछ एक देवों ने गरमी से प्राकल-व्याकल होने का, कितने ही देवों ने तपने का, कितने ही देवों ने विशेष रूप में तपने का तो कितने ही देवों ने एक साथ इन तीनों का दिखावा किया। कितने ही हक-हक, कितने ही थक-थक कितने ही धक-धक जैसे शब्द और कितने ही अपने-अपने नामों का उच्चारण करने लगे। कितने ही देवों ने एक साथ इन चारों को किया / कितने ही देवों ने टोलियां (समूह, झुड) बनाई, कितने ही देवों ने देवोद्योत किया, कितने ही देवों ने रुक-रुक कर बहने वाली बाततरंगों का प्रदर्शन किया। कितने ही देवों ने कहकहे लगाये, कितने ही देव दुहदुहाहट करने लगे, कितनेक देवों ने वस्त्रों की बरसा की और कितने ही देवों ने टोलियाँ बनाई, देवोद्योत किया देवोत्कलिका की, कहकहे लगाये, दुहहाहट की और वस्त्रवर्षा की। कितनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org