________________ 122 ] (राजप्रश्नीयसूत्र तत्पश्चात् उसी दक्षिणी मुखमण्डप की उत्तरदिशा में स्थित स्तम्भ-पंक्ति के निकट अाया। वहाँ प्राकर लोमहस्तक- मोरपंखों से बनी प्रमार्जनी को उठाया, उससे स्तम्भों को, पुतलियों को और व्यालरूपों को प्रमाजित किया तथा पश्चिमी द्वार के समान दिव्य जलधारा से सींचने आदि रूप सब कार्य धूप जलाने तक किये। इसके बाद दक्षिणदिशावर्ती मुखमण्डप के पूर्वी द्वार पर आया, आकर लोमहस्तक हाथ में लिया और उससे द्वारशाखाओं, पुतलियों सर्परूपों को साफ किया, दिव्य जलधारा सींची आदि सब कार्य धूप जलाने तक के किये। / तत्पश्चात् उस दक्षिण दिशावर्ती मुखमण्डप के दक्षिण द्वार पर आया और द्वारचेटियों आदि को साफ किया, जलधारा सींची आदि धूप जलाने तक करने योग्य पूर्वोक्त सब कार्य किये / तदनन्तर जहाँ दाक्षिणात्य प्रेक्षागृहमण्डप था, एवं उस दक्षिणदिशावर्ती प्रेक्षागृहमण्डप का अतिमध्य देशभाग था और उसके मध्य में बना हुआ वज्रमय अक्षपाट तथा उस पर बनी मणिपीठिका एवं मणिपीठिका पर स्थापित सिंहासन था, वहाँ आया और मोरपीछी लेकर उससे अक्षपाट, मणिपीठिका और सिंहासन को प्रमाजित किया, दिव्य जलधारा से सिंचित किया, सरस गोशीर्ष चन्दन से चचित किया, धूपप्रक्षेप किया, पुष्प चढ़ाये तथा ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी-लम्बी गोल. गोल मालाओं से विभूषित किया यावत् धूपक्षेप करने के बाद अनुक्रम से जहाँ उसी दक्षिणी प्रेक्षागृहमण्डप के पश्चिमी द्वार एवं उत्तरी द्वार थे वहाँ आया और वहाँ आकर पूर्ववत् प्रमार्जनादि कार्य से लेकर धूपदान तक करने योग्य कार्य सम्पन्न किये / उसके बाद पूर्वी द्वार पर पाया। यहाँ आकर भी प्रमार्जनादि कार्य से लेकर धूपदान तक के सब कार्य पूर्ववत् किये। तत्पश्चात् दक्षिणी द्वार पर आया, वहाँ अाकर भी उसने प्रमार्जनादि कार्य से लेकर धूप दान तक के सब कार्य किये। इसके पश्चात् दक्षिण दिशावर्ती चैत्यस्तूप के सन्मुख आया वहाँ पाकर स्तूप और मणिपीठिका को प्रमार्जित किया, दिव्य जलधारा से सिंचित किया, सरस गोशीर्ष चन्दन से चचित किया, धूप जलाई, पुष्प चढ़ाये, लम्बी-लम्बी मालायें लटकाई आदि सब कार्य सम्पन्न किये / अनन्तर जहाँ पश्चिम दिशा को मणिपीठिका थी, जहाँ पश्चिम दिशा में विराजमान जिनप्रतिमा थी वहाँ आकर प्रमार्जनादि कृत्य से लेकर धूप दान तक सब कार्य किये / इसके बाद उत्तरदिशावर्ती मणिपीठिका और जिनप्रतिमा के पास पाया। पाकर प्रमार्जन करने से लेकर धपक्षेपपर्यन्त सब कार्य किये। इसके पश्चात् जहाँ पूर्वदिशावर्ती मणिपीठिका थी तथा पूर्वदिशा में स्थापित जिनप्रतिमा थी, वहाँ पाया। वहाँ पाकर पूर्ववत् प्रमार्जन करना आदि धूप जलाने पर्यन्त सब कार्य किये / इसके बाद जहाँ दक्षिण दिशा की मणिपीठिका और दक्षिण दिशावर्ती जिनप्रतिमा थी वहाँ पाया और पूर्ववत् धूप जलाने तक सब कार्य किये। ___इसके पश्चात् दक्षिणदिशावर्ती चैत्यवृक्ष के पास आया / वहाँ आकर भी पूर्ववत् प्रमार्जनादि कार्य किये। इसके बाद जहाँ माहेन्द्रध्वज था. दक्षिण दिशा की नंदा पुष्करिणी थी, वहाँ आया। आकर मोरपीछी को हाथ में लिया और फिर तोरणों, त्रिसोपानों काष्ठपुतलियों और सर्परूपकों को मोरपीछी से प्रमाजित किया-पोंछा, दिव्य जलधारा सींची, सरस गोशीर्ष चंदन से चचित किया, पुष्प चढ़ाये, लम्बी-लम्बी पुष्पमालाओं से विभूषित किया और धूपक्षेप किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org