________________ सिद्धायतन ] [101 उन प्रतिमाओं की हथेलियाँ और पगलियाँ तपनीय स्वर्णमय हैं / मध्य में खचित लोहिताक्ष रत्न से युक्त अंकरत्न के नख हैं। जंघायें,---जानुयें-घुटने,-पिंडलियाँ और देहलता-शरीर कनकमय है / नाभियाँ तपनीयमय हैं। रोमराजि रिष्ट रत्नमय हैं। चूचक (स्तन का अग्र भाग) और श्रीवत्स (वक्षस्थल पर बना हुआ चिह्न-विशेष) तपनीयमय हैं। होठ प्रवाल (मूगा) के बने हुए हैं, दंतपंक्ति स्फटिकमणियों और जिह्वा एवं तालु तपनीय स्वर्ण (लालिमायुक्त स्वर्ण) के हैं। नासिकायें बीच में लोहिताक्ष रत्न खचित कनकमय हैं (नेत्र लोहिताक्ष रत्न से खचित मध्य-भाग युक्त अंकरत्न के हैं और नेत्रों की तारिकायें (कनीनिकायें-आँख के बीच का काला भाग) अक्षिपत्रपलकें तथा भौंहें रिष्टरत्नमय हैं। कपोल, कान और ललाट कनकमय हैं / शीर्षघटी (खोपड़ी) वज्र रत्नमय है / केशान्त एवं केशभूमि (चांद) तपनीय स्वर्णमय है और केश रिष्टरत्नमय हैं। १७९-तासि णं जिणपडिमाणं पिटुतो पत्तेयं-पत्तेयं छत्तधारगपडिमानो पण्णत्तायो / तामो णं छत्तधारगपडिमानो हिम-रयय-कुबेदुप्पगासाई, सकोरंटमल्लदामधवलाई श्रायवत्ताई सलीलं धारेमाणीओ धारेमाणीओ चिट्ठति / / तासि णं जिणपडिमाणं उभो पासे पत्तेयंपत्तेयं चामरधार (ग) पडिमाओ पण्णत्तायो। तामो गं चामर-धारपडिमातो चंदप्पहवयरवेरुलियनानामणिरयणखचियचित्तदंडाप्रो सुहमरयत. दोहवालाप्रो संखंककुद-दगरय-अमतमहियफेणपुजसन्निकासाप्रो धवलामो चामराम्रो सलीलं धारेमाणीप्रो चिट्ठति / तासि गं जिणपडिमाणं पुरतो दो-दो नागपडिमानो जक्खपडिमानो, भूयपडिमानो, कुडधारपडिमाश्रो सव्वरयणामईओ अच्छाप्रो जाव चिट्ठति / तासि ण जिणपडिमाणं पुरतो अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं, अट्ठसयं भिंगाराणं एवं प्रायंसाणं, यालाणं पाईणं सुपइट्टाणं, मणोगुलियाणं वायकरगाणं, चित्तगराणं रयणकरंडगाणं, हयकंठाणं जाव' उसभकंठाणं, पुप्फचंगेरोणं जावर लोमहत्थचंगेरीणं, पुष्फपडलगाणं तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं, अट्टसयं धूवकडुच्छुयाणं संनिक्खित्तं चिटुति / सिद्धायतणस्स णं उरि अट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता / १७६-उन जिन प्रतिमाओं में से प्रत्येक प्रतिमा के पीछे एक एक छत्रधारक-छत्र लिये खड़ी देवियों की प्रतिमायें हैं। वे छत्रधारक प्रतिमायें लीला करती हुई-सी भावभंगिमा पूर्वक हिम, रजत, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रभा–कांतिवाले कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त धवल-श्वेत आतपत्रों (छत्रों) को अपने-अपने हाथों में धारण किये हुए खड़ी हैं। प्रत्येक जिन-प्रतिमा के दोनों पार्श्व भागों-बाजुओं में एक एक चामरधारक-प्रतिमायें हैं। वे चामर-धारक प्रतिमायें अपने अपने हाथों में विविध मणिरत्नों से रचित चित्रामों से युक्त चन्द्रकान्त, वज्र और बैडूर्य मणियों की डंडियों वाले, पतले, रजत जैसे श्वेत लम्बे-लम्बे बालों वाले 1, 2, ३-देखें सूत्र संख्या 132. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org