________________ सूर्यामदेव का अभिषेक-महोत्सव ] [107 प्रसन्न, हर्षातिरेक से विकसित) हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से निकला, निकलकर ह्रद (जलाशय-तालाब) पर पाया, प्राकर ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुना। प्रविष्ट होकर पूर्वदिशावर्ती त्रिसोपान पंक्ति से नीचे उतरा, उतर कर जल में अवगाहन और जलमज्जन (स्नान) किया, जल-मज्जन करके जलक्रीडा की, जलक्रीडा करके जलाभिषेक किया, जलाभिषेक करके आचमन (कुल्ला आदि) द्वारा अत्यन्त स्वच्छ और शुचिभूत-शुद्ध होकर ह्रद से बाहर निकला, निकल कर जहां अभिषेकसभा थी वहाँ आया, वहाँ आकर अभिषेकसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती द्वार से उसमें प्रविष्ट हुआ, प्रविष्ट होकर सिंहासन के समीप आया और पाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। सूर्याभदेव का अभिषेक-महोत्सव १८६-तए णं सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा प्राभिप्रोगिए देवे सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी _ खिपामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभस्स देवस्त महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवटवेह / १८६-तदनन्तर सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों ने आभियोगिक देवों को बुलाया और बुलाकर उनसे कहा--- देवानुप्रियो ! तुम लोग शीघ्र ही सूर्याभदेव का अभिषेक करने हेतु महान अर्थ वाले महर्ष (बहुमूल्य) एवं महापुरुषों के योग्य विपुल इन्द्राभिषेक की सामग्री उपस्थित करो-तैयार करो। १६०–तए णं ते प्राभिओगिमा देवा सामाणियपरिसोववन्नेहि देवेहि एवं वुत्ता समाणा हट्ठ जाव हियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु 'एवं देवो! तह' त्ति प्राणाए विणएणं वयर्ण पडिसुगंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसोभागं प्रवक्कमति, उत्तरपुरस्थिमं दिसोभागं अवकमिसा वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति / समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई जाव' दोच्चं पि उब्वियसमुग्धाएणं समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवनियाणं कलसाणं, असहस्सं रुप्पमयाणं कलसाणं, असहस्सं मणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं सुबन्तमणिमयाणं कलसाणं, अट्टसहस्सं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, असहस्सं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं असहस्सं भोमिज्जाणं कलसाणं एवं भिगाराणं, प्रायंसाणं थालाणं, पाईगं, सुमतिद्वाण वायकरगाणं, रयणकरंडगाणं, पुप्फचंगेरोणं, जावर लोमहत्यचंगेरोणं, पुष्फपडलगाणं जाव लोमहत्यपडलगाणं, सोहासणाणं, छत्ताणं, चामराणं, तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं, झयाणं, असहस्सं धूवकडुच्छुयाणं विउव्वति / विउवित्ता ते साभाविए य वेउविए य कलसे य जाव कडुच्छुए य गिण्हंति, गिण्हित्ता सूरिया. भानो विमाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव' वीतिवयमाणे-बोतिवयमाणे जेणेव खोरोदयसमुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खोरोयगं 1. देखें सूत्र संख्या-१३ 2. देखें सूत्र संख्या 132 3. देखें सूत्र संख्या 132 4-5 देखें सूत्र संख्या 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org