________________ [ राजप्रश्नोयसूत्र वरकणगथूभियागा जाव' वणमालानो / तेसि णं मुहमंडवाणं भू मि मागा, उल्लोया तेसि णं मुहमंडवाणं उरि अट्ठ मङ्गलगा, झया, छत्ताइच्छत्ता। तेसि णं मुहमंडवाणं पुरतो पत्त यं-पत्त यं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते, मुहमंडववत्तन्वया जाव, दारा, भूमिमागा, उल्लोया / १६४---इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे इस प्रकार हैं---पूर्व दिशा में एक, दक्षिण दिशा में एक और उत्तर दिशा में एक / वे द्वार ऊँचाई में सोलह योजन ऊँचे, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेश मार्ग वाले हैं। वे द्वार श्वेत वर्ण के हैं / श्रेष्ठ स्वर्ण से निर्मित शिखरों एवं वनमालानों से अलंकृत हैं, अादि वर्णन पूर्ववत् यहाँ करना चाहिये। (उन द्वारों के ऊपर स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र विराजित - हैं-शोभायमान हो रहे हैं।) उन द्वारों के आगे सामने एक-एक मुखमंडप हैं। ये मंडप सौ योजन लम्बे, पचास योजन चौड़े और ऊँचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचे हैं / सुधर्मा सभा के समान इनका शेष वर्णन कर लेना चाहिये। __ इन मंडपों की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं, यथा--एक पूर्व दिशा में, एक दक्षिण दिशा में और एक उत्तर दिशा में / ये द्वार ऊँचाई में सोलह योजन ऊंचे हैं, पाठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेशमार्ग वाले हैं। ये द्वार श्वेत धवलवर्ण और श्रेष्ठ स्वर्ण से बनी शिखरों, वनमालाओं से अलंकृत हैं, पर्यन्त का वर्णन पूर्ववत् यहाँ करना चाहिये। (उन मंडपों के भूमिभाग, चंदेवा और ऊपर पाठ-पाठ मंगल, ध्वजारों, छत्रातिछत्र आदि का भी वर्णन करना चाहिए।) इन मुखमंडपों में से प्रत्येक के आगे प्रक्षागृहमंडप बने हैं। इन मंडपों के द्वार, भूमिभाग, चांदनी आदि का वर्णन मुखमंडपों की वक्तव्यता के समान जानना चाहिये / १६५-तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्त यं पत्तेयं वइरामए अक्खाडए पण्णत्त / तेसि णं वयरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झ-देसभागे पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता, तामो णं मणिवेढियाओ अट्ट जोयणाई प्रायाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वणिमईओ अच्छाप्रो जाव' पडिरूवायो। तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं सोहासणे पण्णत्ते, सोहासणवष्णो सपरिवारो। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उरि अटुट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता / 1. देखें सूत्र संख्या 121 से 129 2. देखें सूत्र संख्या 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org