________________ 94] [ राजप्रश्नीयसूत्र उन स्तूपों के ऊपर पाठ-आठ मंगल, ध्वजायें छत्रातिछत्र यावत् सहस्रपत्र कमलों के झूमके सुशोभित हो रहे हैं। उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है। ये प्रत्येक मणिपीठिकायें आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और अनेक प्रकार के मणि रत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं। प्रत्येक मणिपीठिका के ऊपर, जिनका मुख स्तूपों के सामने हैं ऐसी जिनोत्सेध प्रमाण वाली चार जिन-प्रतिमायें पर्यकासन से विराजमान हैं, यथा-(१) ऋषभ, (2) वर्धमान (3) चन्द्रानन (4) वारिषेण की। विवेचन-जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ' अर्थात् ऊंचाई में जिन-भगवान् के शरीर प्रमाण वाली। जिन भगवान् के शरीर की अधिकतम ऊंचाई पांच सौ धनुष और जघन्यतम सात हाथ की बताई है / वर्णन को देखते हुए यहाँ स्थापित जिन-प्रतिमायें पांच सौ धनुष प्रमाण ऊंची होनी चाहिये, ऐसा टीकाकार का अभिप्राय है। चैत्य वृक्ष १६७--तेसि णं थूभाणं पुरतो पत्तयं-पत्तेयं मणिपेढियानो पण्णत्तानो। तानो णं मणिपेढियानो सोलस जोयणाई पायामविक्खंभेणं, अट्र जोयणाई बाहल्लेणं, सवमणिमई प्रो जाव पडिरूवाओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं-पत्तयं चेइयरुक्खे पण्णत्ते, ते णं चेइयरुक्खा अढ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं श्रद्धजोयणं उन्हेणं, दो जोयणाइं खंधा, श्रद्धजोयणं विक्खंभेणं, छ जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ट जोयणाई अायामविखंभेणं, साइरेगाई अटु जोयणाई सत्वग्गेणं पण्णत्ता / तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा--- वयरामयमूल-रययसुपइट्टियविडिमा, रिट्टामयवि उलकंदवेरुलियरुइलखंधा, सुजायवरजायरूबपढमगविसालसाला, नाणामणिमयरयणविविहसाहपसाह-वेरुलियपत्त-तवणिज्जपबिटा, जंबणयरत्तम उयसुकुमालपवालपल्लववरंकुरधरा, विचित्तमणिरयणसुरभिकुसुमफलभरनमियसाला, सच्छाया, सप्पभा, सस्सिरोया, स उज्जोया, अहियं नयणमणणिव्वुइकरा, अमयरससमरसफला, पासाईया ... / तेसि णं चेइयरुक्खाणं उरि अदृट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। १६७-उन प्रत्येक स्तूपों के आगे-सामने मणिमयी पीठिकायें बनी हुई हैं। ये मणिपीठिकायें सोलह योजन लम्बी-चौड़ी, पाठ योजन मोटी और सर्वात्मना मणिरत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं। उन मणिपीठिकानों के ऊपर एक-एक चैत्यवृक्ष है। ये सभी चैत्यवक्ष ऊंचाई में पाठ योजन ऊंचे, जमीन के भीतर आधे योजन गहरे हैं / इनका स्कन्ध भाग दो योजन का और आधा योजन चौड़ा है। स्कन्ध से निकलकर ऊपर को ओर फैली हुई शाखायें छह योजन ऊंची और लम्बाई-चौड़ाई में पाठ योजन को है। कुल मिलाकर इनका सर्वपरिमाण कुछ अधिक पाठ योजन है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org