________________ 90 ] [ राजप्रश्नीयसूत्र उस उपकारिकालयन का भूमिभाग आलिंग-पुष्कर, मृदंगपुष्कर, सरोवर, करतल, चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल आदि के समान अत्यन्त सम और रमणीय है। उस भूभाग में अंजन, खंजन, सघन मेध घटाओं आदि के कृष्ण वर्ण से, भृगकीट, भृगपंख, नीलकमल, नील-अशोकवृक्ष आदि के नील वर्ण से, प्रातःकालीन सूर्य, पारिजात पुष्प, हिंगलुक, प्रबाल आदि के रक्त वर्ण से, स्वर्णचंपा, हरताल, चिकुर, चंपाकुसुम ग्रादि के पीत वर्ण से, और शंख, चन्द्रमा, कुमुद आदि के श्वेत वर्ण से भी अधिक श्रेष्ठ कृष्ण प्रादि वर्ण वाली मणियां जड़ी हुई हैं। वे सभी मणियां इलायची, चंदन, अगर, लवंग प्रादि सुगंधित पदार्थों से भी अधिक सुरभि गंध वाली हैं और बुर–रुई, मक्खन, हंसगर्भ नामक रुई विशेष से भी अधिक सुकोमल उनका स्पर्श है। मुख्य प्रासादावतंसक का वर्णन १६१–तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगे मूलपासायवडेंसए पण्णत्ते। से णं मूलपासायडिसए पंच जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेण, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं, प्रभुग्गयमूसिय-वण्णो, भूमिभागो उल्लोश्रो सीहासणं सपरिवारं भाणियन्वं, अदृट्ठमंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता। १६१-उस अतिसम रमणीय भूमिभाग के अतिमध्यदेश में एक विशाल मूल-मुख्य प्रासादावतंसक (उत्तम महल) है / वह प्रासादावतंसक पांच सौ योजन ऊँचा और अढाई सौ योजन चौड़ा है तथा अपनो फैल रही प्रभा से हँसता हुआ प्रतीत होता है, आदि वर्णन करते हुए उस प्रासाद के भीतर के भूमिभाग, उल्लोक-चंदेवा, परिवार रूप अन्य भद्रासनों आदि से सहित सिंहासन. पाठ मंगल, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों का यहां कथन करना चाहिए / १६२---से णं मूलपासायवडेसगे प्रणेहि चहि पासायव.सएहि तयद्ध च्चत्तप्पमाणमेहि सवतो समंता संपरिखिते, ते णं पासायव.सगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढ़ उच्चत्तेणं. पणवीस जोयणसयं विषख भेणं जाव वणश्रो। ते णं पासायडिसया अर्जाह चहि पासायडिसएहि तयधुच्चत्तप्पमाणमेदि सव्वग्रो समंता संपरिखित्ता / ते णं पासायव.सया पणवीसं जोयणसयं उड्ढ उच्चत्तेणं बासद्धि जोयणाई श्रद्धजोयणं च विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय वण्णो, भूमिभागो उल्लोप्रो सोहासणं सपरिवारं भाणियन्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता। ते णं पासायवडेंसगा अणेहि चहि पासायवडेंसरहिं तदधुच्चत्तपमाणमेहि सवतो समंता संपरिक्खित्ता, ते णं पासायवडेंसगा बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं एक्कतोसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, वण्णो, उल्लोप्रो सीहासणं सपरिवार पासाय० उरि अटुट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org