________________ 58 ] [राजप्रेश्नीयसूत्र निबद्ध, जन्मचरित्रनिबद्ध, जन्माभिषेक, बालक्रीड़ानिबद्ध, यौवन-चरित्रनिबद्ध (गृहस्थावस्था से संबंधित) अभिनिष्क्रमण-चरित्रनिबद्ध (दीक्षामहोत्सव से संबन्धित), तपश्चरण-चरित्र निबद्ध (साधनाकालीन दृश्य) ज्ञानोत्पाद चरित्र-निबद्ध (कैवल्य प्राप्त होने की परिस्थिति का चित्रण), तीर्थ-प्रवर्तन चरित्र से सम्बन्धित, परिनिर्वाण चरित्रनिबद्ध (मोक्ष प्राप्त होने के समय का दृश्य) तथा चरम चरित्र निबद्ध (निर्वाण प्राप्त हो जाने के पश्चात् देवों आदि द्वारा किये जाने वाले महोत्सव से संबंधित) नामक अंतिम दिव्य नाट्य-अभिनय का प्रदर्शन किया। विवेचन–देवों द्वारा श्रमण भगवान् महावीर एवं गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष प्रदर्शित बत्तीस प्रकार के नाट्य-अभिनयों में से अंतिम (बत्तीसवां अभिनय) श्रमण भगवान् महावीर की जीवन-घटनाओं के मुख्य-मुख्य प्रसंगों से संबंधित है / यह सब देखकर तत्कालीन अभिनयकला की परम प्रकर्षता का दृश्य उपस्थित हो जाता है और उस-उस अभिनय की उपयोगिता भी परिज्ञात हो जाती है। नाट्याभिनय का उपसंहार १०७–तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीमो य चउन्विहं वाइत्तं वाएंति--तं जहा. ततं-विततं-घणं-झुसिरं / १०७–तत्पश्चात् (दिव्य नाट्यविधियों को प्रदर्शित करने के पश्चात) उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने ढोल-नगाड़े आदि तत, वीणा आदि वितत, झांझ आदि घन और शंख, बांसुरी आदि शुषिर इन चतुर्विध वादित्रों-बाजों को बजाया। १०८-तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियानो य चउन्विहं गेयं गायति तंजहा. उक्खितं-पायंत-मंदायं-रोइयावसाणं च / १०८--वादित्रों को बजाने के अनन्तर उन सब देवकुमारों और देवकुमारियों ने उत्क्षिप्त, पादान्त, (पादवृद्ध) मंदक और रोचितावसान रूप चार प्रकार का संगीत (गाना) गाया। १०६–तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियायो य चउब्विहं गट्टविहि उवदंसंति, तंजहा-अंचिरिभियं-प्रारभडं-भसोलं च / १०६--तत्पश्चात् उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने अंचित, रिभित, आरभट एवं भसोल इन चार प्रकार की नृत्यविधियों को दिखाया। ११०–तए गं ते बहवे देवकमारा य देवकुमारियानो च चउन्विहं अभिणयं अभिणएंति, तंजहा-दिट्ठतियं—पाडितियं (पाडियंतियं)-सामन्नाविणिवाइयं-अंतो-मज्झावसाणियं च / ११०-तत्पश्चात् उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने चार प्रकार के अभिनय प्रदर्शित किये, यथा--दार्टान्तिक, प्रात्यंतिक, सामान्यतोविनिपातनिक और अन्तर्मध्यावसानिक, [लोकमध्यावसानिक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org