________________ भगवान महावीर के जीवनप्रसंगों का अभिनय ] [57 वासंतीलता, अतिमुक्तकलता और श्यामलता की सुरचना वाला लताप्रविभक्ति नामक नाट्याभिनय प्रदर्शित किया / 104- दुयणाम उवदंसेति / विलंबियं णाम उव० / दुयविलबियं णाम उव० / अंचियं, रिभियं, अंचियरिभियं, प्रारभडं, भसोलं प्रारभउभसोलं, उप्पयनिवयपवत्तं, संकुचियं पसारियं रयारइयं भंतं संभंतं णामं दिध्वं णट्टविहि उवदंसेंति / १०४–इसके पश्चात् अनुक्रम से द्र त, विलंबित, द्र त विलंबित, अंचित, रिभित, अंचितरिभित, पारभट, भसोल और आरभटभसोल नामक नाट्यविधियों का अभिनय प्रदर्शित किया / तदनन्तर उत्पात-(ऊपर नीचे उछलने-कूदने) निपात, संकुचित-प्रसारित भय और हर्षवश शरीर के अंगोपांगों को सिकोड़ना और फैलाना, रयार इय (?) भ्रान्त और संभ्रान्त सम्बन्धी क्रियाओं विषयक दिव्य नाट्य-अभिनयों को दिखाया / विवेचन-पूर्वोक्त नाट्यविधियों का स्वरूप-प्रतिपादन नाट्यविधिप्राभृत में किया गया है। परन्तु पूर्वो के विच्छिन्न होने से इन विधियों का पूर्ण रूप से जैसा का तैसा वर्णन करना सम्भव नहीं है। वर्तमान में भरत का नाट्यशास्त्र उपलब्ध है। जिसमें नाट्य, संगीत आदि से सम्बन्धित विषयों की जानकारी दी गई है। यहां देवों ने जिन नाट्यों का प्रदर्शन किया है, उनमें से कुछ एक के नाम तो इस नाट्यशास्त्र में भी आये हैं, यथा-संकुचित, प्रसारित, द्रत. विलंबित, अंचित इत्यादि / सूत्र 92 से 104 पर्यन्त संगीत और वाद्यों के वर्णन के साथ नाट्य विधियों के अभिनयों का वर्णन किया गया है। अनेक अभिनय तो ऐसे हैं जिनके भाव समझ में पा सकते हैं। इनमें से कतिपय पशुपक्षियों, वनस्पतियों, जगत् के अन्य पदार्थों, प्राकृतिक प्रसंगों और उत्पातों एवं लिपि-आकारों से सम्बन्धित हैं। १०५-तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति जाव दिवे देवरमणे पवते यावि होत्था। १०५-तदनन्तर अर्थात् पूर्वोक्त प्रकार की नाट्यविधियों का प्रदर्शन करने के अनन्तर वे देवकुमार और देवकुमारियाँ एक साथ एक स्थान पर एकत्रित हुए यावत् दिव्य देवरमत में प्रवृत्त हो गये। भगवान महावीर के जीवन-प्रसंगों का अभिनय __ १०६-तए णं ते बहके देवकुमारा य देवकुमारोपो य समणस्स भगवनो महावीरस्स पुव्वभवचरियणिबद्ध च, चवणचरियणिबद्ध च, संहरणचरियनिबद्धच, जम्मणचरियनिबद्ध च, अभिसेअचरिय निबद्धच, बालभावरियनिबद्ध च, जोव्वण-चरियनिबद्ध च, कामभोगचरियनिबद्धच, निक्खपण-चरियनिबद्ध च, तवचरणचरियनिबद्ध च, णाणुप्पायरिय-निबद्ध च, तित्थपवत्तणचरिय-परिनिव्वाणचरियनिबद्ध च, चरिमचरियनिबद्धं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति / १०६-तत्पश्चात् उन सब देवकुमारों एवं देवकुमारियों ने श्रमण भगवान् महावीर के पूर्वभवों संबंधी चरित्र से निबद्ध एवं वर्तमान जीवन संबंधी, च्यवनचरित्रनिबद्ध, गर्भसंहरणचरित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org